अंग्रेजी की ख्यातिलब्ध लेखिका , सामाजिक कार्यकर्त्री (और साथ ही साथ अभिनेत्री भी !) सुश्री अरुंधती रॉय के घर पर एक राजनीतिक दल के कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया और जैसा कि रॉय कह रही हैं कि उन लोगों ने तोड़ - फोड़ भी की. उन्होंने सबूत के तौर पर एक फोटो भी ऊपर लेख में लगाया हुआ है , जिसमे मिटटी की एक हँड़िया टूटी हुई दिख भी रही है.हालाँकि कोई भी उस हँड़िया को देख कर कह सकता है कि वह तोड़ने से नहीं बल्कि गिर कर टूटी हुई ज्यादा लग रही है .खैर ! रॉय ने तोड़ - फोड़ और मीडिया द्वारा इस उपद्रव की अडवांस कबरेज की तैयारी , दोनों की निंदा तुरंत ही की. लेकिन अगले ही दिन से वे सिर्फ़ मीडिया पर फोकस हो गयीं, उन्होंने फैसला कर दिया कि मीडिया अब अपराध का औजार बन गया है. उनकी बड़ी भोली सी शिकायत है कि मीडिया को सब पता था कि कुछ लोग प्रदर्शन के बहाने तोड़-फोड़ करने आ रहे हैं, लेकिन मीडिया ने उन्हें पूर्व सूचना क्यों नहीं दी !
कोई राबड़ी देवी सरीखी महिला ऐसा भोलापन दिखाए, तो हंसी और तरस , दोनों एक साथ आ सकता है.आनी तो नही चाहिए , लेकिन अज्ञानता पर कभी-कभी बेसाख्ता हंसी आ ही जाती है, भले लोग बाद में पछताते भी हैं, तो क्या अरुंधती इतनी अज्ञानी हैं, कि उन्हें मीडिया के दायित्वों और क्रियाकलापों के बारे में कुछ भी पता नहीं है ? क्या मीडिया का काम यही है कि वह अपनी जानकारियों को अपने अख़बार या चैनल में इस्तेमाल करने से भी पहले भोंपू लगाकर चारों तरफ बाँट दे ? फ़र्ज कीजिये कि पुलिस किसी खूंखार अपराधी को पकड़ने जा रही है,और किसी अख़बार वाले को यह पता है तो उसका क्या फ़र्ज बनता है कि वह उस अपराधी को सचेत कर दे कि भाई निकल लो ,पुलिस आ रही है ? तमाम घटनाएँ ऐसी होती हैं, जहाँ पहले से ही मीडिया वाले अड्डा लगा कर बैठ जाते हैं. तो क्या यह बंद हो जाना चाहिए ? या अरुंधती रॉय ऐसा कोई कायदा सिर्फ़ अपने लिए चाहती हैं, कि उनके घर पर कोई प्रदर्शन होना हो, गिरफ़्तारी होनी हो या उनकी मर्जी के खिलाफ कोई बात होनी हो तो मीडिया का कुत्ता पहले ही भौं-भौं करके उन्हें सचेत कर दे ? आप जंग लड़ कर फतह का तमगा भी हासिल करना चाहती हैं और चाहती हैं कि धूल तक न लगे ! हिंदी तो आपको नहीं आती होगी फिर भी किसी से पाठ कराकर श्रद्धेय भगवती चरण वर्मा कि मशहूर कहानी -- दो बाँके -- सुन लीजिये !आप जैसे लोगों के लिए ही लिखा है उन्होंने. नक्सलियों और आदिवासियों जैसों चिरकुटों के बीच रहकर यह महारानियों वाली ठसक कहाँ से आ गयी आपके स्वभाव में ? या यही हकीकत है ? या अब आप अपनी निगाह में ऐसी शख्सियत बन गयी हैं कि हिंदुस्तान के मीडिया को आपका पी. आर . ओ. बन कर ख़ुशी महसूस करनी चाहिए !
मीडिया पेड न्यूज़ छाप रहा है, मीडिया अपराध का औजार बन गया है, मीडिया हर प्रकार से भ्रष्ट बन गया है, मीडिया बड़े लोगों का भोंपू बन गया है, ये सारी गालियाँ कबूल कर ली जाएँगी बस आप इतना भर बता दीजिये कि समाज के किस हिस्से को आपने आदर्श पैमाना मन कर मीडिया वालों को इतनी बेरहमी से नापा है ? सुश्री अरुंधती रॉय ! जिस प्रकार बड़ी पूँजी बिना अपराध के इकठ्ठा नहीं होती, उसी प्रकार बड़े मीडिया तंत्र भी गंगाजल से धुले रुपयों से नही खड़े किये जाते, और इन्ही बड़े मीडिया तंत्र में आपकी जान बसती है, क्योंकि यही आप जैसों को अरुंधती रॉय बनाते हैं, आप बाई-काट क्यों नहीं कर देती इस अपराधी मीडिया का ! आमीन !!
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