Monday, November 22, 2010

किसी को भी बोलने से नहीं रोका जाना चाहिए ---- सुनील अमर

संघ परिवार वैसे तो अपने स्थापना-काल से ही मार-पीट और खून-खराबे में विश्वास रखता रहा है, लेकिन 06 दिसम्बर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस और वहां प्रेस वालों से मार-पीट करने के बाद से संघ ने इसे अपना एक मात्र ट्रेंड ही बना लिया है. अब किसी भी वैचारिक विरोध के स्थान पर संघ के लठैत मार-काट पर ही उतारू हो जाते हैं, ऐसा देखने में आ रहा है. अब क्योंकि कोई भी सत्तारूढ़ राजनीतिक दल संघ के ऐसे गुंडों पर सख्ती नहीं करता, इसलिए यह गुंडागर्दी बढ़ती ही जा रही है.
इस देश में सुश्री अरुंधती रॉय को किसी भी विषय पर बोलने का उतना ही अधिकार है,जितना देश के किसी भी नागरिक को, और रॉय उतनी ही अपने क्रिया-कलापों के लिए स्वतंत्र हैं, जितना संघ प्रमुख मोहन भागवत अपने को समझते हैं. भागवत की मर्जी , वे चाहें तो अपने को कम स्वतंत्र समझें, लेकिन अरुंधती रॉय या जो कोई भी भारतीय अपने विचार प्रकट करना चाहे, उसे देश के संविधान ने यह आज़ादी दे रखी है, और वह ऐसी आज़ादी के लिए किन्हीं भागवतों का मोहताज नहीं है!
बुद्धि का जवाब बुद्धि से दिया जाना चाहिए, लेकिन जब बुद्धि ख़त्म हो जाती है तो स्वाभाविक ही हाथ-लात और डंडा-गोली चलने लगती है. सुश्री अरुंधती की बहुत सी बातों से बहुत से लोग सहमत नहीं हैं ( मैं खुद भी ) लेकिन संघ या कहीं के गुंडे अपने डंडे के बल पर किसी का बोलना या देश में कहीं आना-जाना रोक दें, यह प्रशासन के मुंह पर तमाचा है,और यह अगर शासन की मर्जी नहीं है तो बार-बार ऐसी वारदातें क्यों हो रही हैं देश भर में? जितना सुश्री अरुंधती बोलती हैं, उसका हज़ार गुना तो स्वयं संघ बोलता रहता है, और ऐसा नहीं है कि संघ को देशवासियों ने कोई अलग से अधिकार दे रखा है! संघ की स्थिति भी देश में वैसी ही है, जैसी कि सुश्री रॉय या देश के अन्य निवासियों की.
संघ को अगर गलत फ़हमी है कि वह एक बड़ा संगठन है, तो उसे जानना चाहिए कि देश और संविधान सबसे बड़े संगठन है. बोलने का हक़ ही तो लोकतंत्र है !

1 comment:

  1. संघ को अगर गलत फ़हमी है कि वह एक बड़ा संगठन है, तो उसे जानना चाहिए कि देश और संविधान सबसे बड़े संगठन है. बोलने का हक़ ही तो लोकतंत्र है !
    सही कहा आपने
    dabirnews.blogspot.com

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