Monday, November 15, 2010

बेचारे अमर सिंह ! ---- -- सुनील अमर

पता नहीं त्रिशंकु की कथा सिर्फ़ मिथक ही है या कोई सच्चाई भी, लेकिन जिस किसी को भी त्रिशंकु का दर्द या छटपटाहट महसूस करने की ललक हो, उसे इन दिनों पूर्व सपा नेता अमर सिंह के भाषणों को जाकर सुनना चाहिए. यह उन लोगों के लिए भी सुअवसर है जो दुखांत कथानकों में रूचि लेते हैं. खीझ, गुस्सा, बेबसी, कुछ बिगाड़ न पाने की लाचारी और '' जो मेरे साथ नहीं वो मेरा दुश्मन '' मार्का अभियान इन दिनों चलाकर नि:संदेह अमर सिंह उन सब में सबसे ऊपर अपना मुकाम बना लिए हैं, जो अब तक तमाम राजनीतिक पार्टियों से निकाले गए हैं. इतना खर्चीला और इतना समर्पित जड़-खोदू कार्यक्रम अभी तक किसी भी निष्कासित नेता ने नहीं चलाया था, अमर सिंह के राजनीतिक पूर्वजों में अब तो शरद पवार, संगमा, नारायणदत्त तिवारी, अर्जुन सिंह, कल्याण सिंह, उमा भारती, वेनी वर्मा, आज़म खां आदि पता नहीं कितने नाम हैं, लेकिन इन सबमें वह आग कहाँ जो अमर सिंह में है! और यदि आग थी भी तो उससे इन लोगों ने अपनी राह रोशन करने का काम किया, किसी को पलीता लगाने का नहीं. वैसे इन सबमें एक फ़र्क तो है जिसे मैं शायद अंडर इस्टीमेट कर रहा हूँ -- बाकी सबके मूंछें नहीं हैं, लेकिन अमर सिंह के बड़ी-बड़ी हैं! मेरे एक मित्र ने एक बार मूंछों की महत्ता के बारे में बताते हुए कहा था कि ब्रह्मा जी जब सबको अक्ल बाँट रहे थे, तो कुछ खूब बड़ी-बड़ी मूंछ वाले सज्जनों का नंबर आया. ब्रह्मा जी ने कहा कि आप सब भी अक्ल ले लीजिये. उन लोगों ने पूछा कि यह कहाँ रहेगी ? ब्रह्मा जी ने इशारे से बताया कि सिर में. इस पर वे सब बेहद खफ़ा हो गए! नाराज होकर बोले कि -- मूंछ के ऊपर कुछ नहीं. और वे सब क्रोध में भन्नाते हुए लौट गए. ( वैसे इस घटना की सत्यता परख कर ही आप सब बिश्वास कीजियेगा) .
कल इलाहाबाद में अमर सिंह ने जया भादुड़ी बच्चन की जम कर खिंचाई की और उन्हें बिगडैल बताया. उन्होंने क्रोध पूर्वक आश्चर्य व्यक्त किया कि उनके सपा छोड़ने (?) के बाद जया (अमिताभ वाली) ने भी सपा क्यों नहीं छोड़ दी? उन्होंने फैसला भी सुनाया कि इस जया का समर्पण रिश्तों में नहीं बल्कि राजनीति में है! बेचारे अमर सिंह! उनके सामान्य ज्ञान में शायद यह होगा कि जया नाम की सारी स्त्रियाँ एक जैसी ही होती हैं!
लोग कई तरह से अमर सिंह की आलोचना करते हैं, लेकिन उनकी एक खासियत को बिलकुल ही भूल जाते हैं कि वे सूरदास की काली कम्बली हैं जिस पर दूजा रंग नहीं चढ़ता ! 15 साल राजनीति में रहने के बाद भी वे राजनीतिक नहीं हो पाए ! क्या लड़कपन है उनके अन्दर! हालाँकि इसका रहस्य भी वे एक बार बता चुके हैं कि अभी पिछले दिनों उन्होंने एक 16 साल के लड़के का गुर्दा जो लगवा लिया है!
बेचारे अमर सिंह ! जितना श्रम-समय और साधन वे लगभग साल भर से मुलायम सिंह को गरियाने में लगा रहे हैं, उससे अब तक तो वे कोई Political - Outfit खड़ा कर रहे होते. पार्टी से निकाले गए हर नेता के साथ लोगों की सहानुभूति कुछ दिन रहती ही है, चतुर नेता इस समय का लाभ उठा कर अपना राजनीतिक आधार बनाते हैं, लेकिन अमर सिंह जैसे नेता इसका इस्तेमाल सौतिया -डाह निकलने में करते हैं, और जब तक वे इससे छुट्टी पाते हैं , जनता उनकी छुट्टी कर चुकी होती है ! 00

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