Sunday, November 07, 2010

आखिर चाहती क्या हैं अरुंधती राय ? sunil amar

'' अरुंधती राय को पढ़ने,जानने और उनकी हालिया गतिविधियाँ देखने के बाद अक्सर यह सवाल मन में आता है कि क्या वे दिग्भ्रमित हो गयी हैं ? उनकी पुस्तक ' द गाड ऑफ़ स्माल थिंग्स ' जिसे बुकर पुरस्कार मिला था, से पहले उन्हें लेखन ,समाज सेवा या अभिनय आदि हलकों में कोई जानता नहीं था .बुकर के बाद वे अचानक एक्टिविस्ट हो गयी ,अभिनेत्री हो गयी और इधर कुछ वर्षों से उन्होंने राष्ट्र,संप्रभुता , अखंडता और संविधान आदि पर नुकसान पहुँचाने वाला हमला बोलना शुरू कर दिया है .अरुंधती , जब नक्सलियों की हिमायत करती थी, तो उनके प्रति सहज आदर उत्पन्न हो जाता था कि वे शोषितों ,मजलूमों और बेदखल लोगों की लडाई को अपने रसूख और रुतबे की मदद दे रही हैं,और इक्त्फाक से हमारे हुक्मरान जिस जुबान को पढ़ते - समझते हैं , अरुंधती उसी भाषा में लिखती है !और ये भी कि, वे जिस जुबान की प्रोडक्ट हैं, उस जुबान के अख़बार और पत्रिकाएं उन्हें सर -माथे लेती हैं .
लेकिन ये सब बड़ी धीमी गति से प्रतिफल देने वाली क्रियाएं हैं ! उन्हें तो रातों-रात शोहरत की बलंदी चाहिए ,जिसकी कि उन्हें बुकर ने आदत डाल दी थी ! अब बुकर जैसे शाहाकार तो रोज हो नहीं सकते , उसके लिए खून - पसीना जो एक करना पड़ता है , वो तो है ही, उससे भी ज्यादा खून- पसीना उस जुगाड़ में लगाना पड़ता है , जो बुकर दिलाता है .और बुकर की भी तो एक सीमा है. भारत जैसे देश में बुकर और मैग्सेसे को जानने वाले कितने हज़ार लोग होंगे भला ! इससे वह प्यास नहीं मिटती जो बुकर और अंग्रेजी मीडिया ने जगा दी ! वो जैसा अभिनय करती हैं , उसका भी दायरा बुकर जैसा ही है. यह बताने की जरूरत नहीं कि देश में कैसी हीरोइनों को लोकप्रियता मिलती है !
तो फिर लोकप्रियता कि भूख मिटे कैसे ? जाहिर है उलटवांसी करके ! बहुत से लोग चर्चा में आने के लिए ऐसा ऊट-पटांग करते ही रहते हैं- पढ़े - लिखे भी और मूर्ख भी . अभी पिछले ही साल तो हमने देखा , कि जसवंत सिंह ने नरसिम्हाराव के कार्यकाल में पीएमओ में सीआईए का जासूस होने की बात कही थी और प्रमाण देने को भी कहा था . जब उनकी खासी चर्चा हो गयी , तो वे प्रमाण देने से साफ मुकर गए .ऐसी कई कथाएं हैं इस देश में ! अरुंधती को भी ऐसा ही शार्ट-कट चाहिए ! पहले वे नक्सलियों पर लगीं , लेकिन नक्सलियों और भुक्खड़ आदिवासियों को समाज का वह तबका कोई भाव ही नहीं देता , जिस सोसायटी को वे बिलोंग करती हैं.आप सबमे से कोई बताये कि नक्सलियों - आदिवासियों पर काम करने से आज तक किसे और कौन सा पुरस्कार मिला है ?गोली के अलावा ! तो फिर ऐसा कोई मुद्दा होना चाहिए जिस पर समाज का प्रभु - वर्ग अस -अस कह उठे ! यह मुद्दा हो सकता है -- शासन -सत्ता -संविधान और भगवान को गरियाने का .
अरुंधती राय तो कश्मीर को इस देश का हिस्सा नहीं मान रही हैं ( कुछ दिन पूर्व उन्होंने अंग्रेजी पत्रिका आउटलुक में भी सबसे बड़ा लेख ऐसा ही लिखा था , जैसा अभी वे बोली हैं , लेकिन उनकी वो कोशिश परवान नहीं चढ़ सकी .) कश्मीर को अलग कराने के उनके अभियान का यह ताज़ा प्रयास है . इस तरह के अभियान का एक फायदा उन्हें यह भी मिल जाता है कि पाकिस्तान और अमेरिका तथा अमेरिका के कुछ पिछलग्गू देशों में भी वे चर्चा में आ जाती हैं ! लेकिन अरुंधती जैसी सोच रखने वाले अन्य लोगों को भी एक बात समझ लेनी चाहिए कि उन्ही की सोच वाले कई भाई - बन्धु ऐसे भी हैं जो इस देश का ही अस्तित्व मिटाने की कसम खाए बैठे हैं,और कामयाब नहीं हो रहे हैं ! किसी भी लोकतान्त्रिक देश में संसद से बड़ी जगह और क्या हो सकती है ? अलगाववादियों और आतंकवादियों ने उस पर भी हमला करके देख लिया . क्या बिगाड़ लिए वो भारत नामक इस देश का ?
अरुंधती की योजना एक बार गिरफ्तार होने की है , ऐसा मंतव्य वे कई बार प्रकट भी कर चुकी हैं .नक्सलियों के मुद्दे पर उन्होंने कहा ही था कि चाहे पुलिस उन्हें गिरफ्तार ही कर ले ! दरअसल वे नेताओं की जुबान बोलती हैं , वैसे ही जैसे कि मुलायम सिंह , मुख्यमंत्री मायावती से कहते हैं या मायावती मुख्यमंत्री मुलायम सिंह से कहती हैं ! वे सब जानते हैं कि गिरफ्तार तो होना ही नही है ,और अगर हो भी गए तो बे-शुमार फायदा मिलेगा ! अरुंधती भारत के प्रभु-वर्ग से सम्बन्ध रखती हैं , ये लोग जल्दी गिरफ्तार नहीं होते , होते भी हैं तो सोच-समझ कर , नफा- नुकसान का गुणा - भाग करके ! इनकी बातों को वैसे ही छोड़ देना चाहिए जैसे विभूति राय जैसे छिनरों को .कुछ दिन में ये अपनी गति को पहुँच ही जाते हैं !

1 comment:

  1. bahut sahi vihsleshan.....kam se kam mujhe aisa lagta hai....baki aapke anuyayi ya virodhi janein.....

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