अयोध्या पर हुए उच्च न्यायालय के फैसले का राजनीतिकरण करने के लिए भारतीय जनता पार्टी के इशारे पर विश्व हिन्दू परिषद इन दिनों अयोध्या में संत समाज की बैठकें लगातार कर रही है। यही इतना नहीं बल्कि जिन पक्षकारों को विवादित जमीन का मालिकाना हक़ मिला हुआ है, उन पर वह दबाव भी बना रही है कि या तो वे अपने हिस्से की जमीन ही उसे सौंप दें या फिर उस पर मंदिर निर्माण करने का काम उसे करने दें। विहिप जो बैठकें करती है, उसमें मौजूद लोगों को वह संत और धर्माचार्य कहकर प्रचारित करती है तथा यह भी बताती है कि ऐसे लोगों की समिति उच्चाधिकार प्राप्त समिति है। विहिप और भाजपा के कई बड़े नेता बहुत बार यह कह चुके हैं कि उनका अदालती फैसले में कोई भरोसा नहीं है। कई बार वे यह भी कह चुके हैं कि इस विवाद को संसद में प्रस्ताव पास करके हल किया जाना चाहिए हालाँकि जब छह साल से अधिक समय तक उन्हीं (भाजपा गठबंधन) की सरकार थी तो उन्होंने कभी भी न तो अयोध्या विवाद को लेकर कोई उत्तेजक कार्यक्रम किया और न ही संसद में प्रस्ताव करने जैसी कोई माँग ही कभी की।
विहिप के उक्त प्रकार के बयानो को लेकर एक शंका प्राय: व्यक्त की जाती है कि क्या वह और उसके संतों की तथाकथित उच्चाधिकार प्राप्त समिति कोई संविधानेत्तर संस्था हैं या आतंकवादियों का संगठन, जिस पर इस संप्रभु राष्ट्र का नियम-कानून नहीं चलता? विहिप और भाजपा के कुछ नेता जब यह कहते हैं कि वे अयोध्या में विवादित स्थल पर मंदिर निर्माण के अपने अभियान को बंद नहीं करेंगें तथा मुसलमानों को, जिन्हें की उक्त स्थल पर एक तिहाई जमीन मस्जिद निर्माण के लिए उच्च न्यायालय के फैसले ने दे रखी है, अयोध्या की शास्त्रीय सीमा के भीतर मस्जिद नहीं बनाने देगें, तो ऐसा वे किस संवैधानिक अधिकार से कहते हैं और क्या देश के एक समुदाय के प्रति इस तरह की भयकारी घोषणा करना कानून सम्मत है? अयोध्या की शास्त्रीय सीमा क्या है, इसे वे जान बूझकर स्पष्ट नहीं करते। यहाँ यह जान लेना जरुरी है कि अयोध्या की तीन शास्त्रीय सीमाऐं हिन्दू ग्रंथों में वर्णित हैं- एक, पंच कोसी दूसरी, चौदह कोसी तथा तीसरी चौरासी कोसी। पंच कोसी यानी लगभग 15 किलोमीटर की चौहद्दी ही इतनी अधिक है कि उसमें अयोध्या व मंडल मुख्यालय फैजाबाद के अलावा समस्त उपनगरीय क्षेत्र आ जाता है। और अगर चौरासी कोसी की सीमा की अवधारणा को माना जाय तब तो उसमें जनपद अम्बेडकर नगर, सुलतानपुर तथा बाराबंकी भी समाहित हो जाते हैं। विहिप के अतीत को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि अगर पांच कोसी पर बात करने को कोई तैयार होने लगेगा तो वह पलटी मारकर कह सकती है कि उसका शास्त्रीय सीमा से अभिप्राय तो चौरासी कोसी से है। अब बात विहिप के उस उच्चाधिकार प्राप्त समिति की जिसे वह बार-बार मंदिर निर्माण के लिए फैसला करने को अधिकृत बताती है। यह समिति है क्या बला और यह कहाँ से ऐसे कार्यों को करने का अधिकार प्राप्त करती है? क्या यह कोई निर्वाचित या संविधान के प्रारुपों के तहत गठित संस्था है? और अयोध्या या देश में कहीं और अगर कोई मंदिर बनना है तो क्या वह इन्हीं कथित संतों या उच्चाधिकार प्राप्त समिति की जिम्मेदारी है! क्या इस देष में हिन्दुओं का कोई जनमत संग्रह कभी कराया गया था कि सभी हिन्दू इन्हीं संतों को अपना प्रतिनिधि मानते हैं और धर्म सम्बन्धी अपने समस्त अधिकारों को इन्हें हस्तान्तरित कर चुके हैं? धर्म का प्रचार-प्रसार करना और बात है, लेकिन एक अत्यंत संवेदनशील धार्मिक मुद्दे पर सरकार और संविधान से परे जाकर मनमानी करना निश्चित ही संज्ञेय अपराधा है।
विहिप और भाजपा बार-बार अयोध्या में विवादित स्थल पर मंदिर बनाने की घोशणा करते हैं और इस मामले पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद भी ये दोनों संगठन लगातार हिन्दु श्रध्दालुओं को धोखा देने का काम कर रहे हैं। सभी जानते हैं कि भाजपा और विहिप दोनों को अयोध्या में मंदिर बनाने का कोई अधिकार कहीं से भी नहीं है। अभी जो फैसला आया है उसने तो और स्पश्ट कर दिया है कि उक्त जमीन किन-किन लोगों की है। सच्चाई यह है कि अयोध्या के विवादित स्थल की कुल लगभग 70 एकड़ जमीन, जिसमें न सिर्फ कई मंदिर बल्कि तमाम गृहस्थ हिन्दुओं व मुसलमानों की आवासीय जमीन भी हैं, जनवरी 1993 से ही केन्द्र सरकार द्वारा अधिग्रहीत है, और संसद द्वारा पारित एक कानून के अनुसार वहाँ मंदिर-मस्जिद व सार्वजनिक उपयोग के स्थल आदि का निर्माण करना केन्द्र सरकार के ही जिम्मे है। अब प्रश्न यह उठता है कि जब उक्त समस्त जमीन केन्द्र सरकार की सम्पत्ति है, तो उच्च न्यायालय से मालिकाना हक़ पाये पक्षकार हों या विहिप और भाजपा जैसे गाल बजाने वाली संस्थाऐं, कोई भी वहाँ जाने का अधिकार कैसे रखता है? और जो भी इस संवेदनशील मामले में झूठा प्रचार कर देशवासियों को गुमराह कर रहा है, क्या वह किसी विधिक कार्यवाही का पात्र नहीं है?
भारतीय जनता पार्टी छह साल से अधिक समय तक केन्द्रीय सत्ता में रही है। ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि उसे या विश्व हिन्दू परिषद को यह नहीं पता है कि अयोध्या के विवादित स्थल की वैधानिक स्थिति क्या है। जिस जमीन के टुकड़े के मालिकाना हक़ का फैसला न्यायालय ने किया है उसका कुल क्षेत्रफल सिर्फ 9 बिस्वा 15 धुर ही है। इसमें से एक-एक पक्षकार के हिस्से में 3 बिस्वा 5 धुर ही आता है! क्या इसी टुकड़े पर विहिप इतना भव्य और विशाल मंदिर बनाने की घोषणा आज तक करती आ रही है? क्या उसे या भाजपा को यह नहीं पता है कि यह हिस्सा भी अधिगृहीत है और केन्द्र सरकार की मिल्कियत है? केंद्र सरकार भी अगर वहाँ कोई निर्माण करना चाहे तो उसे कैबिनेट या सहयोगी दलों को विश्वास में लेना पड़ेगा।
वास्तव में विहिप और भाजपा का असल मंतव्य इस मुद्दे को गर्म कर इसके बहाने वोटों की फसल काटना है। उसे लगता है कि येन-केन-प्रकारेण वह एक बार फिर सन् 1992 के पहले वाले हालात पैदा कर सकती है। इसके लिए वह देश भर में हनुमान चालीसा का अनवरत पाठ तथा इसी तरह के हस्ताक्षर अभियान जैसे अन्य हवा-हवाई कार्यक्रम चलाने का प्रयास करती रहती है। वह धर्मभीरु हिन्दू जनता को यह समझाना चाहती है कि हिन्दू धर्म की असली ठेकेदार वही है और वह संविधान और न्यायालय से भी उपर है। अब उसकी सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि उसे उसके हेड आफिस यानी अयोध्या में ही कोई भाव देने को तैयार नहीं है और अयोध्या में उठी आवाज ही इस प्रकरण में पूरे देश में सुनी और समझी जाती है। अयोध्या शांत तो पूरा देश शांत! और अयोध्या की चौथाई संत आबादी भी विहिप को सुनने को तैयार नहीं। विहिप का तो पूरा तबेला ही बाहरी है, उसमें स्थानीय तो कोई है ही नहीं! यही कारण है कि अगर एक हजार की भीड़ भी बटोरनी हो तो विहिप अयोध्या के किसी मेले-ठेले का अवसर ही अपने कार्यक्रम के लिए चुनती है ताकि कुछ भीड़ आसानी से मिल जाय।
विहिप अब संसद में कानून बना कर इस विवाद को सुलझाने की मांग कर रही है, क्योंकि वह जानती है कि ऐसा होना बेहद कठिन काम है। जो तरीका बेहद आसान है यानी बातचीत द्वारा हल का, उसे वह न सिर्फ सिरे से नकारती है बल्कि उसकी राह में यह कहकर रोड़े भी अटकाती है कि अयोध्या की शास्त्रीय सीमा में मंदिर ही नहीं बनने देगी। यही विहिप और भाजपा का असली चाल-चरित्र और चेहरा है।
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हा हा :)
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