Wednesday, November 24, 2010

''शर्म हमको मगर नहीं आती '' -- सुनील अमर

क़ाबलियत और हुनर नापने के पैमाने भी किस तरह राजनीति के मोहताज़ होते हैं, इसे TIMES पत्रिका के ताज़ा फ़ैसलों से जाना जा सकता है. लेकिन इसमें उनका कोई दोष नहीं, क्योंकि वे पश्चिम में रहकर भी पूरब की तरफ नहीं देखते, और हम पूरब वालों को, पश्चिम के सिवा और कोई दिशा मालूम ही नहीं है!
इंदिरा गाँधी और हिलेरी क्लिंटन की भला क्या तुलना हो सकती है ? नेट पर तो बहुत से भाई विदेश मामलों के जानकर भी होंगे, उनसे मेरी गुज़ारिश है कि अगर हिलेरी, इंदिरा गाँधी से 20 ठहरती हों तो कृपया मेरा भी ज्ञानवर्धन करें! हिलेरी छठे स्थान पर और इंदिरा गाँधी 9वें स्थान पर ! बेशर्मी की भी हद होनी चाहिए या नहीं? जिस सदी की चर्चा की गयी है, उसमें क्या थीं हिलेरी ? याद है किसी को ? हाँ, उनकी एक बात ज़रूर याद है कि उन्होंने किस तरह चेहरे पर भारी शर्मिंदगी का भाव लिए हुए अमेरिकन टीवी पर अपने लम्पट पति (और तब राष्ट्रपति भी ) की लम्पटता को माफ़ कर अपने परिवार को टूटने से बचा लिया था !
लेकिन काहे की बेशर्मी ,जब अभी कुछ महीनों पहले इससे भी ज्यादा बेशर्मी करके नोबल वाले हटे हैं ! इराक,अफ़गानिस्तान को ठंडा करने, पाकिस्तान को उजाड़ने,भारत को अस्थिर करने और इरान तथा कोरिया आदि को लगातार हड्काने के कारण अमेरिका के राष्ट्रपति को उन्होंने विश्व शांति का नोबल दे दिया है ! अब इसके बाद भी शर्म नाम की चीज के लिए क्या कोई जगह बचनी चाहिए? ज़रा गौर करिए , मदर टेरेसा अगर भारत की न होकर किसी पश्चिमी देश में पैदा हुई होतीं तो क्या वे 22वें स्थान पर रखी गयी होतीं? यकीन मानिये,वे जेन अडम्स के स्थान यानि पहले नंबर पर होतीं, लेकिन क्या करें ये times वाले, कहाँ से लायें वह आँख जो सही देख सके !
और उनको ज़रूरत भी क्या है ऎसी परवाह करने की ? पाँव तक सर झुका कर उनके हर काम पर कोर्निश करने के लिए हम हमेशा तैयार जो रहते हैं!
शर्म तो, वास्तव में हमें आनी चाहिए, लेकिन आती ही नहीं ! शायद शरमाती है भारत आने में ! 00

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