Wednesday, November 10, 2010

जानिए इन रंगे सियारों की हकीकत ! -- सुनील अमर

कश्मीर पर इन दिनों नए सिरे से कुछ हल्ला मचाने की कोशिश हो रही है. '' नील: श्रंगाल:'' की कहानी आपने पढ़ी है? वही जिसमे एक सियार का रंग नील से भरे बर्तन में गिर जाने के कारण जब बदल गया तो उसे ये भ्रम हो गया कि अब वह कोई सुपर-नेचुरल चीज हो गया है. बाद में उसी के भाई बंधुओं ने पीट-पीट कर उसकी अक्ल ठिकाने की, और वह फिर से अपने को सियार समझने लगा. देश में इन दिनों कुछ '' नील: श्रंगाल:'' निकल आये हैं और वे अपनी समझ से कुछ बहुत उम्दा किस्म की आवाजें निकल रहे हैं, लेकिन सबको पता है कि वे हुआं-हुआं ही कर रहे हैं. इतिहास गवाह है कि इस तरह का हुआना देर तक नहीं चलता. अंग्रेज चले गए, लेकिन कुछ काले अंग्रेज अब भी इस भ्रम में हैं कि कश्मीर पर वार्ता करनी हो या हिंदुस्तान की सरहद तय करनी हो, खुदाई फौजदार यही लोग हैं !
सब जानते हैं कि कश्मीर की समस्या भारत की वजह से नहीं, पाकिस्तान और पाकिस्तान परस्तों की वजह से है. कश्मीर का विलय भारत में कैसे और किन परिस्थितियों में हुआ, इस पर काफी श्रम-समय और साधन (यानि मीडिया ) खर्च किये जा चुके हैं. अब जिसे विलय का इतिहास पढ़ने का शौक हो , उसके लिए पर्याप्त load पुस्तकालयों में उपलब्ध है .विलय का इतिहास गिलानी और अरुंधती जैसों से पढ़ना तो ''नानी के आगे ननिहाल के बखान '' वाले मुहावरे जैसा ही है.
दुनिया में 200 के करीब देश हैं. आपको याद आता है कि कोई देश ऐसा हो जहाँ पूरी तरह से सुख-शांति और अमन-चैन हो? हिंदुस्तान के एकाध जिले जितने बड़े देश भी इस दुनिया में है,लेकिन वे भी अशांति और खूंरेजी से ग्रस्त हैं ! कश्मीर को आज़ाद करा कर जिनकी गोंद में उपहार स्वरुप डालने की कोशिश चंद '' नील: श्रंगाल:'' कर रहे हैं, उससे बदतर हालात अगर दुनिया में कहीं हो, तो ये सियार लोग ज़रा हुआं करके ही बताएं ! राष्ट्र विरोधी आन्दोलन चलाने के लिए ये जिन लोकतान्त्रिक देशों का हवाला देकर वहाँ से ऑक्सीजन प्राप्त कर रहे हैं,वहाँ भी शक के आधार पर गोली मार देने तथा जार्ज फर्नांडीज जैसे रक्षा मंत्री और शाहरुख़ खान जैसे सुपर स्टार की नंगी-तलाशी लेने का कार्यक्रम बाकायदा चलता रहता है, अब ये हो सकता है कि हुँवाने वालों को वहाँ कुछ छूट मिली हुई हो !
एक नया शिगूफा छोड़ा जा रहा है कि इस देश में अभी ''राष्ट्र'' की समझ विकसित नहीं हो पाई है! इनका मतलब है कि कश्मीर में जो सेना-पुलिस द्वारा हिंसा की जा रही है, वह एक राष्ट्र का परिचायक नहीं है, हम पूछते हैं कि ब्रिटेन, अमेरिका, श्रीलंका, नेपाल और खुद पाकिस्तान में क्या हो रहा है, दुनिया के और देशों की बात छोड़ ही दीजिये ! राष्ट्र तो है ही हिंसा का पर्याय ! जब आप राज्य की कल्पना करते हैं तो क्या वह हिंसा के बिना संभव है? जब आप किसी भी राष्ट्र-राज्य में रहने का निर्णय करते हैं, तो आप उसकी न्यूनतम-अधिकतम हिंसा को भी कबूल करते हैं, जिसे वह अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए प्रयोग करता है. परिवार को एक रखने के लिए घर का मुखिया भी तमाम यत्न करता ही है. और अगर कश्मीर की जनता अलग होने पर उतर ही आयेगी तो एक नहीं सौ हिंदुस्तान भी अपनी फ़ौज-फाटा लेकर उसे रोक नहीं पाएंगे ! जिनके राज में सूरज नहीं डूबता था, उंनसे लड़ कर एक नंगे फकीर ने हिंदुस्तान को आजाद करा लिया था, क्योंकि जनता भी ऐसा चाहने लगी थी ! लेकिन ये सब क्रांतिकारियों के बल पर होता है, khadyantrakariyon के बल पर पर नहीं !
किसी भी लोकतान्त्रिक व्यवस्था में यदि परिवर्तन करना हो, तो जनता-जनार्दन से अनुमति लेकर आप सही जगह पहुँचिए और फिर अपने विजन का इस्तेमाल करिए. लेकिन यह पैर का पसीना सर चढ़ाने वाला काम है, इतना आसान नहीं की कहीं से फंडिंग होती रहे और हवाई दौरे होते रहें. बीच-बीच में हुँवाने का काम भी होता रहे !
कई बार शक होता है कि कहीं यह भगवा ब्रिगेड की माया से तो नहीं हुंवा रहे हैं ? जिन लोगों ने राम को बेंच लिया, राम-मंदिर को बेंच लिया और अपने वर्तमान को भी बेंच खाए, उन्हें अब कश्मीर ही शायद बढ़िया दुकान दिख रही हो ! किसी तरह तो मुसलमान बरगलाये जाएँ ! कोर्ट के फैसले से तो मुसलमान लड़े नहीं, कश्मीर अलग कराने के नाम पर ही शायद लड़ पड़ें ! तीनों का भला हो जाये-- सपा,भाजपा और पाकिस्तान का ! '' नील: श्रंगाल:'' की तो पांचो घी में औए सर कढ़ाई में है ही ! और सबसे बड़ा मदारी तो कांग्रेस है , जिसने चादर फैला दी है और अब निगाह लगाये खामोश बैठी है कि देखें अपने हिस्से में कितना आता है !!

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