बाबा रामदेव : एक अदा यह भी ! |
ज्ञानी लोग बताते हैं कि भगवा एक ऐसा रंग है जिसके बाद इस असार-संसार में फिर किसी और रंग की जरुरत ही नहीं रह जाती। भगवा, ज्वाला का प्रतीक है। उसको धारण करने का मतलब ही है कि आपने सांसारिक कमजोरियों, लिप्साओं और वासनाओं को संयम की आग में जलाकर नष्ट कर दिया है और जो कोई भी संसारी व्यक्ति आपके सानिध्य में रहेगा, आपसे दीक्षित होगा, उसका भी व्यामोह नष्ट हो जाएगा। पर, देखने में आता है कि प्राय: ऐसा होता नहीं। यह देव दुलर्भ है। मतलब देवता भी इससे विचलित होते रहे हैं। नारद-वारद को तो प्राय: ही ऐसी विचलन होती रहती थी। तो इसमें बाबा रामदेव का क्या दोष?
उपर जिन सयाने लोगों ने यह बताया है कि कुछ भी स्थायी नहीं, साजिशन उन्होंने यह नहीं बताया कि कम से कम कितनी देर तक यह टिकाऊ रहेगा, वरना बाबा धोखा न खाते। अब महाजनों की कही कोई बात 48 घंटा भी न टिके तो धोखा खाने के अलावा और हो ही क्या सकता है? देखने वाले दंग रह गये कि इस दौरान कितनी तेजी से रंग बदले! जिस बाबा का हवाई अड्डे पर रेड कार्पेट मार्का वेलकम किया गया, 5 स्टार होटल में आवभगत की गई उसी बाबा को 24 घंटे भी न बीतने पाये कि उन्हीं लोगों द्वारा यह सलूक! बाबा ने अपनी आदत के अनुसार सरकार से एडवांस में कोई गोपनीय सौदा कर ही लिया था तो काँग्रेस की पल्टी देखिए कि अखबारवालों के सामने उस चिठ्ठी को ही आऊट कर दिया!
बाबा भी कम नहीं। तप करने के लिए पुलिस से मोहलत ली थी लेकिन वहॉ जाने क्या-क्या करने लगे। कॉग्रेस अलग हैरान! उसकी किस्मत आजकल ऐसी ही चल रही है। अन्ना की काट के लिए जिसे मोहरा बनाती है वो रामदेव बन जाता है और जिसे लाट साहबी करने के लिए भेजती है, वो कामदेव बन जाता है! कॉग्रेस कब तक लाल-पीला स्वागत करती फोकट में। उसने बाबा से काबू में रहने को कहा तो बाबा के चेले कहने लगे कि बाबा तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं। चेले क्या जाने बाबा की लीला कि बाबा की 8 फुट की म्यान महज दिखावे की है, तलवार तो उसमें दो फुट की भी नहीं है। खेल-खेल में शुरु हुआ कार्यक्रम कॉग्रेस को अपने गले में सॉप जैसा लिपटा दिखने लगा। बाबा के पल-पल रंग बदलने से आहत कॉग्रेस ने आखिर वही किया जो कोई भी दिग्भ्रमित कर सकता है। गले में पड़े रामदेव नामक सॉप को मॅूड़ी से पकड़ा और ले जाकर भाजपा के गले में डाल आई कि लो अब संभालो इसे।
जो लीला न करे वो भगवान कैसा? हमारे धर्मग्रंथों में भगवानों के जो मानक लिखे हैं, उसके अनुसार उनका लीला करना अपरिहार्य होता है। भगवान राम ने जनकपुर में लीला न की होती तो परशुराम उन पर फरसा ही चला बैठते। उनकी लीला देखकर वे संतुष्ट हो गये थे। भगवान आशाराम तो बाकायदा कृष्ण की वेशभूषा में स्त्रियों के साथ रासलीला रचाते है! उसी प्रकार भगवान रामदेव भी कुछ लीला करना चाह रहे थे। कभी किसी के कंधे पर चढ़ रहे थे, तो कभी महिलाओं के बीच में घुसे जा रहे थे। बेचारे ब्रह्मचारी आदमी! ख्याल आ गया होगा कि स्त्री न सही तो स्त्री का वस्त्र ही सही, सो किसी स्त्री का वस्त्र पहन लिया। हालॉकि पुलिस यह नहीं बताती कि वे महिलाओं का अधोवस्त्र भी पहने थे कि नहीं। पुलिस कभी भी पूरी बात नहीं बताती।
फिर पुलिस ही कब तक रंग न बदलती। वह तो स्वभाव से ही रंग में भंग करने को आतुर रहती है। थोड़ी देर पहले तक जो पुलिस जरखरीद गुलाम जैसी बनी हुई थी वह अचानक तांडव करने लगी। मुझे शक़ होता है कि पुलिसियों को इतनी ताकत कहीं योग से तो नहीं मिल गई? बहरहाल, पुलिस ने बाबा को बताया कि तप का मतलब यह नहीं होता कि तुम लिंग परिवर्तन करने लगो और अगर लिंग परिवर्तन की तुम्हारी इतनी ही इच्छा है तो चलो तुम्हें पहाड़ों में छोड़ दें। वहीं जो करना हो करो।
मुंशी प्रेमचंद ने अपनी प्रसिध्द कहानी ‘कफन’ के अंत में घीसू और माधव के बारे में लिखा है कि ‘ वे गाये और नाचे भी, ठुमके भी लगाये और भाव भी बताये। बाद में नशे की अधिकता के कारण सुध-बुध खोकर गिर पड़े।’ यही सब बाबा ने भी किया और गिर पड़े! वे पहले बाबा बने, फिर योगी बनकर योग सिखाने लगे। योग में भी उनकी रुचि नाखून रगड़कर सफेद बाल को काला करने और उँगलियों के कई दबाव बिंदु की मार्फत सेक्स जगाने जैसी समस्याओं में ज्यादा रही। बाबा ने इस बात का खासा प्रचार किया कि फलॉ उंगली में सेक्स जागृत करने का दबाव बिंदु होता है और इसीलिए शादी के एंगेजमेंट के समय उसी उँगली में ऍगूठी पहनी जाती है! (हमारे कई सुधी पाठकों को याद होगा, एक समय में स्वयंभू भगवान आचार्य रजनीश उर्फ ओशो भी ऐसा ही कुछ कहते थे। एक बार एक विदेशी पत्रकार ने उनसे पूछा कि भगवान्, ये महिलाऐं हाथ में चूड़ियां क्यों पहनती हैं, तो भगवान ने उत्तर दिया था – दीज आर बेंगल्स। दीज प्रोडयूस द साउन्ड ऑफ सेक्स। मतलब ये चूड़ियाँ हैं और ये सेक्सी ध्वनि पैदा करती हैं!) बाद में बाबा कारोबारी, व्यापारी और उद्योगपति भी बन गये। ये सब हुआ तो राजनीति में भी हाथ आजमाने की सोचने लगे। यहॉ तक तो गनीमत थी लेकिन बाबा को अचानक सत्ता की दलाली करने का भी शौक चढ़ा और रामदेव जैसे लोग शायद समझते हैं कि सत्ता किसी भैंसे की तरह है और अगर उसकी पूंछ पकड़ में आ गई तो मरोड़ कर भैंसे का काबू में कर ही लेंगें। वे काँग्रेस की पूंछ पकड़े तो, उसे मरोड़े भी लेकिन कॉग्रेस ने एक झटका देकर अपनी पूंछ छुड़ा ली। अब पूंछ छुटाया भैंसा कितना खतरनाक हो जाता है इसे तो कोई बाबा रामदेव से जाकर पूछे।
पॉच जून 2011 को दिल्ली के रामलीला मैदान पर आधी रात को सिर्फ रामदेव की धोती ही नहीं खुली उनके तमाम राज फाश हो गए! वे कितने बडे योगी हैं, वे कितना तप कर लेते हैं और वे जनता के लिए कितना संघर्ष कर सकते हैं, पुलिस को देखकर कितना ज्यादा डर सकते हैं, ये सब देश-दुनिया ने देखा। अब इधर बाबा के बारे में जो चंद लोग कटो-मरो की बातें कर उनकी रक्षा में लगे हैं, वे सब असल में उनके कारोबारी लोग हैं।
.बाबा रामदेव के उक्त प्रयत्नों से और चाहे कुछ हुआ या न हुआ हो, लेकिन कई नये तथ्य जरुर स्थापित हो गये। जैसे कि 1. भगवान से भी बड़ी सरकार होती है। 2. योग और तप से भी बड़ी देसी पुलिस होती है। 3. जिस नारी की छाईं पड़ने से भुजंग अन्धा हो जाता है, उसकी छाईं से हमारी पुलिस का रोवाँ भी नहीं टेढ़ा होता और वह ऐसी सैकड़ों छाइयों के बीच घुसकर अपना शिकार पकड़ सकती है, और 4 वक्त अगर बुरा हो तो अंजाम बुरा ही होगा क्योंकि कहा भी गया है कि – मनुज बली नहि होत है, समय होत बलवान, भीलन लूटी गोपिका, वहि अर्जुन, वहि बान!
इस रंग बदलती दुनिया में बेचारे बाबा रामदेव! क्या जानें कि यहाँ इन्सानों की नीयत ठीक नहीं। बाबा, निकला न करो तुम…………। ( प्रवक्ता डाट काम में १७ जून २०११ को प्रकाशित)
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