''...सरकार कैलोरी खाने की मात्रा को गरीबी/अमीरी का आधार मान रही है। क्या सरकार यह नहीं जानती कि जिसके घर नहीं है वो गरीब है, जो दो वक्त भोजन न कर सके वो गरीब है, जो अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा न सके वो गरीब है और जो बीमारी में इलाज न करा सके वो गरीब है? क्या इन जरुरतों को गरीबी निर्धारण का आधार नहीं बनाया जाना चाहिए? जो आदमी 20 रुपये से अधिक रोज कमा ही नहीं पा रहा है आप उसकी कैलोरी नापकर उसके गरीब या अमीर होने का फतवा दे रहे हैं और दावा करते हैं कि आप जनकल्याणकारी राज्य और लोकप्रिय सरकार हैं?......'' ( जन सन्देश टाईम्स 18 जून 2011 के सम्पादकीय पृष्ठ 8 पर प्रकाशित )
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