Tuesday, April 26, 2011

सरकार ही कर रही है छात्रों का शोषण -- सुनील अमर


उत्तर प्रदेश में यह बसपा की चौथी सरकार है और इस बार लगता है जैसे मुख्यमंत्री मायावती ने प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक की जड़ों में मठ्ठा डालने का संकल्प कर लिया है। बीते चार वर्षों में सुश्री मायावती ने जितने भी फैसले शिक्षा को लेकर किये हैं उनका घातक असर अब प्रदेश में साफ-साफ दिखने लगा है। प्राथमिक शिक्षा में अगर दो वर्षों के भीतर दस लाख बच्चों ने स्कूल जाना छोड़ दिया है तो उच्च शिक्षा में जितनी सीटें प्रदेश में हो गयी हैं उतने छात्र ही परीक्षा में नहीं बैठ रहे हैं तथा प्रवेश परीक्षा और काउन्सिलिंग दोनों ही बेमानी साबित होने लगी है। सरकार ने भ्रष्टाचार की तमाम शिकायतों, मुकदमों और सुधार सम्बन्धी सुझावों को दरकिनार करते हुए फीस प्रतिपूर्ति सम्बन्धी अपने ही एक पूर्व फैसले को गत दिनों पलटकर छात्रों को बहुत हताश कर दिया है। इस फैसले ने प्रदेश में उच्च शिक्षा के लाखों छात्रों को एक बार फिर स्कूल प्रबन्धातंत्र का बंधुआ मजदूर बना दिया है।

      प्रदेश में दसवीं कक्षा के बाद पढ़ने वाले छात्रों को प्रतिवर्ष उतनी फीस वापस कर दी जाती है जो शिक्षण शुल्क के नाम पर सरकार लेती है। इसे दशमोत्तर शुल्क प्रतिपूर्ति कहा जाता है। इसमें छात्रों का बैंक खाता खुलवाकर शासन उतने धन का एकाउन्टपेयी चेक छात्र को दे देता है। प्रदेश के उच्च एवं तकनीकी शिक्षण संस्थान के छात्रों के साथ भी गत वर्ष यह शुरुआत की गई। इसके पूर्व छात्रों को दी जाने वाली शुल्क प्रतिपूर्ति की राशि संस्थान प्रबंधकों को दी जाती थी और वे उसका न सिर्फ मनमाना उपयोग करते थे बल्कि बड़े पैमाने पर उसमें धोखाधाड़ी भी करते थे। इन संस्थानों के छात्र क्योंकि प्रायोगिक परीक्षाओं से भी संबध्द रहते हैं इसलिए वे प्रैक्टिकल में फेल कर दिये जाने के डर से प्रबंधतंत्र के खिलाफ मुह नहीं खोलते और प्रबंधतंत्र कई प्रकार से उनका शोषण करता रहता है। अभी पिछले वर्ष ही प्रदेश के कई प्रबंधन व तकनीकी संस्थानों के विरुध्द इस सम्बन्ध में मुकदमें भी दर्ज कराये गये जिस पर घबड़ाकर सरकार ने घोषित किया कि अब इन संस्थानों की धनराशि भी छात्रों के खाते में ही भेजा जाएगा। गत शिक्षा सत्र में ऐसा हुआ भी कि शुल्क प्रतिपूर्ति राशि सीधो छात्रों के बैंक खातों में गई और मँहगी फीस के बोझ से दबे हुए अभिभावकों को जरा राहत मिल गयी थी लेकिन प्रबंधकों के दबाव में आकर अंतत: सरकार ने अपने ही इस फैसले को गत दिनों बदल दिया। अब इस मद का अरबों रुपया एक बार फिर संस्थान प्रबंधकों के हाथ में है, और छात्र उनके रहमो-करम पर हैं। यह जानना दिलचस्प होगा कि प्रदेश में ऐसे भी शिक्षण संस्थान हैं जिन्होंने तीन वर्ष पहले की शुल्क प्रतिपूर्ति राशि अभी तक अपने छात्रों को नहीं दी है!

          इससे भी बुरा हाल प्रदेश में बी.एड. छात्रों का है। वर्ष 2002 में यहाँ प्राथमिक शिक्षकों की ट्रेनिंग के लिए होने वाली बी.टी.सी. प्रवेश परीक्षा को किन्हीं कारणों से उच्च न्यायालय ने स्थगित कर दिया और गरीब छात्रों की फीस का करोड़ों रुपया सरकारी जेब में चला गया। उस वक्त प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी और श्री राजनाथ सिंह मुख्यमंत्री थे। चूकि प्रदेश में प्राथमिक शिक्षकों के करीब 60,000 पद रिक्त थे और शिक्षण कार्य प्रभावित हो रहा था इसलिए श्री राजनाथ सिंह ने इससे निपटने का एक विचित्र रास्ता निकाला कि बी.एड. किये हुए लोगों को उनकी मेरिट के आधार पर चयनित कर उन्हें छह महीने की एक संक्षिप्त बी.टी.सी. ट्रेनिंग के पश्चात प्रायमरी स्कूलों में बतौर सहायक अधयापक नियुक्त कर दिया जाय! आदेश होते ही इसमें शिक्षा माफिया और दलालों का खेल शुरु हो गया। प्रदेश में धाड़ाधाड़ बी.एड. कॉलेज खुलने लगे। उनकी मान्यता आदि के नाम पर सरकारी अधिाकारियों की भी जेबें भरने लगीं। स्ववित्त पोषित योजना के नाम पर चलने वाले इस कोर्स की सरकार द्वारा नियत फीस अलग-अलग कालेजों के लिए यद्यपि 15 से 20 हजार रुपये ही थी और सरकारी वेबसाइट पर इसका उल्लेख भी था लेकिन अधिकारियों की मिलीभगत से प्रबंधाकों ने प्रति छात्र 75,000 से 1,00,000 रुपये तक वसूलना शुरु किया, जबकि ये सब छात्र सरकार द्वारा करायी गयी बी.एड. प्रवेश परीक्षा पासकर काउन्सिलिंग की मार्फत प्रवेश लेने के अर्ह होते थे! इन छात्रों को रसीद उतनी ही धनराशि की मिलती थी जितनी उस कालेज के लिए शासन द्वारा निधर्रित होती थी।

          इस लूट पर जब काफी हल्ला मचा तो और सरकार को लगा कि उसका सर्वजन समाज का नारा फेल हो रहा है तो गतवर्ष सरकार ने इसे पारदर्शी बनाने की घोषणा की, हालाँकि छात्रों को बाद में पता चला कि यह पारदर्शीनहीं बल्कि लूट का नया तरीका था। वर्ष 2002 में बी.टी.सी. प्रवेश परीक्षा पर लगी उच्च न्यायालय की रोक हटा ली जाने के बाद कायदे से बी.टी.सी. की ही प्रवेश परीक्षा शुरु होनी थी लेकिन उसमें चूँकि लूटपाट का खेल नहीं हो पाता, इसलिए सरकार ने उसे कोमा में ही रखा और बी.एड. का खेल जारी रखा। शासनादेश यह हुआ कि इस बार काउन्सिलिंग केन्द्रों यानी विश्वविद्यालय पर ही छात्रों से शासन द्वारा निधार्रित फीस का ड्राफ्ट लेकर उन्हें प्रवेश के लिए सम्बन्धित कालेज का पत्र दे दिया जाएगा। पत्र में यह निधार्रित था कि एक सप्ताह के अन्दर ही प्रवेश ले लेना है।

         ऐसे पत्र लेकर छात्र जब प्रवेश लेने सम्बन्धित कालेज पहुँचे तो वहॉ उनसे अतिरिक्त धन की माँग की गई। जिन छात्रों ने देने से इनकार किया उन्हें ठंढ़े से समझा दिया गया कि पैसा तो देना ही पड़ेगा नहीं तो एक सप्ताह यू ही दौड़ा कर उनकी सीट कैन्सिल करा दी जाएगी जिसे बाद में मैनेजमेंट कोटे से भर लिया जाएगा! भुक्तभोगी छात्रों का कहना था कि यदि सरकार को निधार्रित फीस में ही प्रवेश सुनिश्चित कराना था तो उसे काउन्सिलिंग स्थल पर ही सम्बन्धित कालेजों के स्टाफ को भी बुलाकर रखना चाहिए था ताकि छात्रों को वहीं एडमिशन कार्ड भी मिल जाता। लेकिन शासन ने ऐसा न कर छात्रों को लुटने के लिए फिर से प्रबंधकों के ही पास भेज दिया। अभी आगामी सत्र के लिए तो मायावती सरकार ने और कमाल करते हुए बी.एड. की फीस को ही दुगना कर दिया है!
          मानव संसाधान विकास मंत्रालय की ताजा रिपोर्ट बताती है कि दो साल के भीतर देश भर में करीब 26 लाख बच्चे प्राथमिक स्कूल नहीं गये हैं जिसमें 10 लाख बच्चे सिर्फ उत्तर प्रदेष से ही हैं! तकनीक और प्रबंधान के छात्रों का शोषण लगातार हो ही रहा है। बी.एड. वालों का हाल बेहाल है। माघ्यमिक शिक्षा पूरी तरह शिक्षा माफियों के हाथ में है और एक कमरे वाले मकान के पते पर आधा-आधा दर्जन स्कूलों की मान्यता शासन ने दी हुई है। कई कालेजो का तो अस्तित्व ही नहीं है। ये सब सिर्फ प्रवेश और परीक्षा लेते हैं। मीडिया में हल्ला मचने पर दो-चार कालेजों के खिलाफ थानों में प्राथमिकी दर्ज करा दी जाती है लेकिन असली खेल पुलिस की चार्जशीट में हो जाता है और दागी लोग बेदाग होकर एक और संस्थान खोलने में लग जाते हैं। हास्यास्पद तो यह है कि एक साल जिस पैटर्न पर उच्च शिक्षा के छात्रों को उनके बैंक खाते में शुल्क प्रतिपूर्ति की राशि दी गई और सब कुछ ठीक-ठाक रहा उसे ही अब नाकाफी बताकर रद्द कर दिया गया है। वास्तव में निजी कालेजों के प्रबंधको का उत्तर प्रदेश में जबर्दस्त संगठन है और ये येन-केन-प्रकारेण शासन को प्रभावित कर ले जाते हैं। ( हम समवेत फीचर्स में 25 अप्रैल 2011 को प्रकाशित )

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