Monday, April 25, 2011

राजनीति का बेशर्म विदूषक --- सुनील अमर

राजनीति का बेशर्म विदूषक


राजनीति! कितनी उबाऊ, नीरस, प्रपंची और आपराधिक रुप से तिलस्मी है, इसके बारे में अब किसी को बताना क्या, सभी जानते ही हैं। कभी-कभी मैं सोचता हूं कि अगर इसमें अमर सिंह जैसे लोग न होते तो यह जंगल कितना बियाबान होता? जेठ की तपती दुपहरिया में मीलों फैले निर्जन और वृक्षहीन रास्ते में, एक पथिक को जो राहत किसी पेड़ को देखकर होती है, भले ही वो पेड़ बबूल का क्यों न हो, वही नखलिस्तानी सुकून देश के मौजूदा राजनीतिक माहौल में अमर सिंह की बचकानी हरकतों से मिल रहा है।
घर के सदस्यों के बीच में कैसा भी तनाव क्यों न हो, लेकिन एक छोटा बच्चा अगर है तो वह अपनी बाल सुलभ हरकतों से सबका मन हल्का कर ही देता है। यह देखने में आता है कि कई बार बच्चे जवान ही नहीं होते! भले ही उनका शरीर भारी भरकम क्यों न हो जाय। कुछ चीजें शायद जन्मजात होती हैं। प्रयास करने पर भी उनसे पिण्ड नहीं छूटता। जैसे मैं एक सज्जन को जानता हूं जिनको देखकर लगता है कि वे अब हॅंसे कि तब लेकिन यह जन्मजात है कि चू पड़ने को आतुर एक सलज्ज मुस्कान उनके चेहरे पर हमेशा खिली रहती है और इसी मुस्कान के साथ रोज वे दर्जनों मुर्गों, बकरियों व कुछ बड़े जानवरों को इस भवसागर से मुक्ति दिलाते रहते हैं। आप अपनी लोकसभा को देखिए-इतना मुस्कान रस का माहौल क्या पहले भी कभी था? तो यह सब ‘गॉड गिफ्टेड’ है। इसमें कोई चाहकर भी कुछ नहीं कर सकता। इसी तरह अमर सिंह भी कुछ नहीं कर सकते। वे जो कुछ भी करते हैं वह अपने आप हो जाता है। असल में वे बने ही इसी तरह के हैं।
आजकल कई विश्लेषक उन्हें राजनीतिक विदूषक साबित करते हैं और उन्हें भड़ैंती कला का विशेषज्ञ बताते हैं। मैं विनम्रतापूर्वक उनसे कहना चाहता हूं कि यह विषय-वस्तु का एक पक्षीय आंकलन है। ऐसा करते समय आप अमर सिंह के उन राजनीतिक अवदानों को भूल जाते हैं, जो समय-समय पर उन्होंने देश को दिये हैं! क्या आप भूल गये हैं कि संप्रग-1 में परमाणु करार मुद्दे को लेकर कैसी विकट तनातनी के दिन थे? और संयोग देखिए कि लगभग उसी दौरान सोनिया जी का जन्म दिन भी आ पड़ा था! अब जन्म दिन मार्का आयोजनों को तो आगे पीछे किया नहीं जा सकता। सो एक बेहद तनाव भरे माहौल में जन्म दिन का आयोजन था कि लोग हॅसें भी तो अगल-बगल देखकर, लेकिन लोग उस वक्त मुस्कराये बिना न रह सके जब श्री अमर सिंह बिना निमंत्रण के ही वहॉं पहंच गये! और उस वक्त तो (टी.वी. देख रहा) पूरा देश ही बेसाख्ता हॅंस पड़ा जब उन्होंने सोनिया जी को देखकर नमस्कार किया और सोनिया जी ने अनिच्छापूर्वक मुंह ही फेर लिया! आप सोचकर बताइये कि उस वक्त और कोई था उस महफिल में जो तनावग्रस्त पूरे देश का हॅंसा सकता था?
आगे चलकर तो ऐसे बहुत से अवसर आये जब देश के मनोरंजन की खातिर श्री अमर सिंह ने अपनी इज्ज़त (जो कुछ भी बची रह गई थी!) और राजनीतिक कैरियर की भी परवाह नहीं की। देश में सी.डी. संस्कृति फैलाने में श्री अमर सिंह का उल्लेखनीय योगदान है। अभी गत दिनों एक सुन्दर महिला ने अनायास ही नहीं कहा है कि सबसे बड़े सी.डी. निर्माता स्वयं श्री अमर सिंह हैं। सुन्दरियॉं, श्री अमर सिंह की कमजोरी हैं। एक सुन्दर महिला साथ लिए बगैर वे कभी कोई काम करते नहीं, चाहे काम असुन्दर ही क्यों न हो। मुलायम सिंह भी पहले सिर्फ नाम के ही मुलायम थे। वो तो जब कभी कोई शोधार्थी लगेगा तो पता चलेगा कि मुुलायम सिंह को मुलायम बनाने में सारा योगदान अमर सिंह का ही था। यह अमर सिंह की ही माया थी कि उन्होंने दशकों से सोये पड़े टेलीफोन टेपकांड को एकबार फिर जिन्दा कर दिया था। यह अमर सिंह ही थे जिन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बताया कि उन्होंने अब एक 16 साल के लड़के का गुर्दा लगवा लिया है और अब वे 16 साल के हो गये हैं! गुर्दा बहुत से नेता लगवाये हैं लेकिन ऐसी लड़कपन की बात करने का दिल-गुर्दा है किसी के पास? इस पर भी जो लोग श्री अमर सिंह की बातों को लड़कपन में नहीं लेते वे वास्तव में उनके साथ अन्याय कर रहे होते हैं।
यह ‘टीन एज’ वाला जुनून ही है कि साथ छूटने के बाद भी श्री अमर सिंह अपने दोस्त रहे मुलायम सिंह को भूल नहीं पा रहे हैं। हमारे सजग पाठक बतायें कि छोटे से छोटा कोई कार्यक्रम भी अमर सिंह ने बिना मुलायम सिंह का नाम लिए किया हो? रावण ने जब राम-प्रेम के कारण विभीषण को लात मारकर दरबार से निकाला तब भी विभीषण राम-राम कहते हुए ही निकले! ऐसी लगन भी बहुत दुलर्भ ही होती है। अमर सिंह जब तक सपा में थे, तब भी मुलायम-मुलायम ही भजते रहते थे और जब सपा से निकाल उठे तब भी रोज मुलायम-मुलायम ही भज रहे हैं। उनकी प्रत्येक प्रेस कॉफ्रेस मुलायम के ही नाम से शुरु और उसी पर खत्म होती है। कोई और मैदान होता तो अमर सिंह मॅंजनू की उपाधि पाते लेकिन यह राजनीति की बिडम्बना ही है कि यहॉ ऐसे गुणों को कोढ़ में खाज़ सरीखा समझा जाता है! क्या तजुर्बा था सूरदास को जो उन्होंने लिखा -‘ लरिकइयॉं कौ प्रीति, कहौ अलि कैसे छूटै? ’
आज के समय में सबसे कठिन काम किसी को हॅसाना है। श्री अमर सिंह इस कला में सराबोर हैं। जैसे पुरानी फिल्मों में जॉनी वॉकर, जगदीप, क्रेस्टो मुखर्जी, असरानी और महमूद आदि को देखते ही लोग हॅंस पड़ते थे कि अब ये आ गये हैं तो हास्य रस का सीन होगा ही, बिल्कुल वही दर्जा श्री अमर सिंह ने अपने लिए रिजर्व कर लिया है। वे टी.वी. पर दिखें या मंच पर, लोग जानते ही हैं कि अब हॅसना ही है। क्या यह आप सबको कोई उपलब्धि नहीं लगती? इसके बावजूद लोग हैं कि उन्हें गिनने को ही तैयार नहीं! सारे देश में इन दिनों भ्रष्टाचार पर संग्राम छिड़ा हुआ है और भ्रष्टाचार में थोड़ा बहुत दखल रखने वाले रामदेव या भूषण आदि की भी काफी पूछ है लेकिन इसमे महारत रखने वाले श्री अमर सिंह को कोई पूछ ही नहीं रहा है? क्या अन्ना साहब को यह नहीं पता है कि कॉटे से ही कॉटा निकलता है और भ्रष्टाचार का कॉटा निकालने के लिए श्री अमर सिंह से विकट कॉटा दूसरा कौन हो सकता है? लेकिन हद है अनदेखी की भी। वो तो गुर्दा जवान है, सह ले रहा है, किसी बुढ्ढे़ का होता तो........।








2 comments:

  1. Ha-ha-ha !! Wah Sunil Ji, Maza aa gaya apka lekh padhkar. Kya khoob likha hai aapne -- वो तो गुर्दा जवान है, सह ले रहा है, किसी बुढ्ढे़ का होता तो........। Ha-ha !!
    Unke Mulayam-Mulayam bhjne ko bhi aapne kya badhiya likha -‘ लरिकइयॉं कौ प्रीति, कहौ अलि कैसे छूटै? ’
    Bahut badhiya laga, Realy.
    Lekin Mulayam Singh par aap kuchh nhi likh rahe hain ? koyi khas wajah ?

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  2. शुक्रिया सुनिधि,
    आपको अच्छा लगा तो समझिये कि मेरा लिखना सार्थक रहा. और हाँ! मुलायम जी पर भी लिखूंगा कभी. वैसे इतने नीरस राजनेता पर लिखना आसान भी नही है न ? हा-हा ! फिर भी लिखूंगा.

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