''...तुम देते मुझको उम्र कैद, आजीवन कारावास मुझे,
मैं सब कुछ सह लेता लेकिन तुम दे डाले वनवास मुझे !
तुम अग्नि-परीक्षा ले लेते, मैं ख़ुशी-ख़ुशी से जल जाता |
इस तरह कहानी बन जाती , कुछ तुम कहती, कुछ मैं कहता |
एक उम्र बिता दी है हमने,दिल में घुट कर, मन में घुटकर,
न चैन तुम्हें, न चैन हमें, क्या कुछ पाए हम-तुम जुड़कर |
मैं गैर सही, पर तुम कहती, तो मैं रस्ते से हट जाता |
इस तरह कहानी ....
मैं लड़ा बहुत इस दुनिया से, सह गया बहुत कड़वे ठोकर,
तुम साथ रहे , मैं जीत गया, पर हार गया तुमको खोकर !
तुम पारस थे गर छू देते, मैं भी कंचन मन हो जाता ||
इस तरह कहानी बन.....'' ( सुनील अमर )
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