कैसे विकट समय में हम जी रहे हैं कि देश के चोटी के नेता भी अपनी जबान से मवालियों को मात देते नजर आ रहे हैं! लोकतंत्र में किसी नेता को परखने का सही समय चुनाव ही होता है, जब वह हाथ जोड़े और सिर झुकाए मतदाताओं के पास जाता है। चुनाव का यह आम दृश्य होता है। बजाय इसके, इधर राष्ट्रीय स्तर के कुछ नेताओं में अपराधियों जैसी ढ़िठाई दिख रही है। अब तक देखने में यही आता था कि मतदाताओं को लुभाने के लिए नेता लोग तमाम तरह के ऐसे वादे और घोषणाऐं करते रहते थे जिसके पूरा होने के बारे में मतदाताओं को पहले ही दिन से शक़ रहता था लेकिन इस चुनाव में तो न सिर्फ मतदाताओं को धोखा देने बल्कि संवैधानिक व्यवस्थाओं से टकराने और उनकी ऑख में धूल झोंकने का भी काम नेताओं द्वारा हो रहा है। ये नेता इस तरह से कानून की धज्जियाँ उड़ा रहे हैं कि आम आदमी के मन में दहशत हो रही है कि ये अगर देश की बागडोर पा गए तो क्या करेंगें!
देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा है। एक दशक से यह पार्टी लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित करती है जबकि संविधान में ऐसी कोई व्यवस्था है ही नहीं। इस बार भाजपा के ऐसे दावेदार गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं। मोदी यद्यपि देश की दो सीट से लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन वे अपने भाषणों में कहते हैं देश में जो भी मतदाता कमल (भाजपा का चुनाव चिह्न) पर मुहर लगाएगा, वह वोट उनको ही मिलेगा! मानों वे अमेरिका के राष्ट्रपति की तरह देश में प्रधानमंत्री का कोई सीधा चुनाव लड़ रहे हैं। इन्हीं मोदी ने पिछले कई चुनावों में अपनी वैवाहिक स्थिति का खाना खाली छोड़ दिया था। न विवाहित बताया, और न अविवाहित। अपने हालिया भाषणों में उन्होंने कई बार बताया कि प्रधानमंत्री बन जाने पर वे कोई भी भ्रष्टाचार नहीं करेंगें क्योंकि उनके तो कोई है ही नहीं! लेकिन गत सप्ताह गुजरात ने चुनाव का नामांकन पत्र भरते समय उन्होंने घोषित किया कि वे अरसे से शादीशुदा हैं और श्रीमती जशोदाबेन उनकी पत्नी हैं! अब पता चल रहा है कि उनके माँ-बाप, भाई-बहन सब कोई हैं। ऐसा नहीं हैं कि मोदी की अंतरात्मा अचानक जागृत हो गई और उन्होंने विवाह के साल भर बाद से बिना तलाक के छोड़ रखी और बहुत तकलीफ में दिन काट रही अपनी पत्नी को अपना लिया हो। अपनाया तो उन्होंनें अभी भी नहीं है। असल में इधर चुनाव में नामांकने के नये नियम ऐसे सख्त हो गए हैं कि फार्म में कोई भी खाना अगर खाली छोड़ा गया तो फार्म को अधूरा मानकर रद्द कर दिया जाएगा। इस भय ने मोदी के झूठ को उजागर किया। अपनी ब्याहता बीवी से ऐसा सलूक करने वाले मोदी देश की जनता से उसके पालन-पोषण का वादा कर रहे हैं! बताया जाता है कि वे अपनी मॉ से भी दशकों से नहीं मिले हैं। मोदी जोगी भी नहीं, बाकायदा गृहस्थ हैं।
देश में एक और स्वनामधान्य नेता हैं- मुलायम सिंह यादव। समाजवादी पार्टी नामक एक क्षेत्रीय दल के राष्ट्रीय अधयक्ष हैं और उत्तर प्रदेश में इनकी पार्टी की सरकार है। देश के रक्षामंत्री रह चुके हैं। किसी समय में जमीन से जुड़े नेता होते थे और खुद को समाजवादी चिंतक लोहिया की विचारधारा का बताते रहते हैं और इनकी पार्टी में लोग इन्हें नेताजी के नाम से पुकारते हैं। इन दिनों मुसलमानों को कैसे भी रिझाकर उनके वोट लेने की तरकीब में नेताजी लगे रहते हैं। मुम्बई के शक्ति मिल बलात्कार कांड के आरोपियों को गत सप्ताह फांसी की सजा सुनाई गई। संयोग से इस जघन्य कांड के अपराधियों में कुछ मुस्लिम युवक हैं। बस नेता जी का वोट प्र्रेम जागृत हो गया और उन्होंने सार्वजनिक रुप से ऐलान कर दिया कि नौजवानों से तो ऐसी गलती (बलात्कार) हो ही जाती है और बलात्कार के दोषियों को फॉँसी की सजा नहीं दी जानी चाहिए! यहाँ यह धयान रखने की बात है कि दिसम्बर 2012 में दिल्ली बस बलात्कार कांड की जिस घटना की दुनिया भर में निंदा हुई और उसके दोषियों को भी फांसी की सजा सुनाई गई तब इन वयोवृध्द नेताजी को बलात्कारियों को माफ कर देने की अपील नहीं सूझी थी। सारी दुनिया के लोग मानते हैं कि बलात्कार सबसे ज्यादा क्रूर और जघन्यतम अपराधा है और इसकी शिकार महिला को उसके बाकी जीवन भर के लिए मुर्दा जैसा बनाकर रख देता है। देश और दुनिया की आधी आबादी महिलाओं की ही है और उस आधी आबादी के प्रति ऐसा क्रूर नजरिया रखने वाला आदमी देश में सरकार बनाने का दावा करके वोट मॉग रहा है! बलात्कारी तो किसी एक महिला को जीवन भर के लिए मर्माहत करता है लेकिन मुलायम सिंह की इस सोच ने तो सारी महिलाओं को मर्माहत किया है। हैरत तो इस बात पर भी है इसी पार्टी के मुम्बई के एक कुख्यात नेता ने भी मुलायम सिंह के बयान का समर्थन किया है तो मुलायम सिंह के पूर्व सहयोगी और अब कॉग्रेस पार्टी के एक विकट नेता बेनी प्रसाद वर्मा ने बीते सप्ताह लखनऊ में पत्रकार वार्ता में कहा कि- 'मोदी चाय तो बेचते थे लेकिन उसमें अफीम मिलाकर बेचते थे।' राजनीतिक आरोपों का स्तर देखिए!
देश में एक और स्वनामधान्य नेत्री हैं- सुश्री ममता बनर्जी। इसमें कोई शक़ नहीं कि वे एक उजले चरित्र की बेहद ईमानदार नेता हैं और उनकी जितनी सादगी और निम्नतम खर्चे में जीवन यापन करने वाले देश में बिरले लोग ही हैं। लेकिन राजनीतिक अक्खड़पने और ज़िद के चलते विवादों और चर्चाओं में आना भी उनका शगल है। एक समय सांसद रहते हुए उन्होंने यह कहकर संसद को सकते में ला दिया था कि अगर उनकी बात न सुनी गई तो वे अपना कपड़ा उतार कर संसद में फेंक देंगीं! अब वही ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री हैं और गत सप्ताह उन्होंने चुनाव आयोग के निर्देश मानने से इनकार करके सनसनी फैला दी थी। चुनाव आयोग ने उन्हें चेतावनी देकर समय सीमा निधर्ाारित की तो गनीमत है कि वे आयोग का निर्देश मानने को राजी हो गईं अन्यथा पश्चिम बंगाल का चुनाव रद्द होने की स्थिति बन रही थी।
चुनाव में बड़बोलेपन और जुबानी ज़हर की कारस्तानी दिखाने वाले तो तमाम छुटभैया या दोयम दर्जे के नेता हैं और कुछ को तो चुनाव आयोग ने दंडित भी किया है। लेकिन ज्यादा चिंता की बात यह है कि उपरवर्णित नेतागण देश की बागडोर संभालने की जुगत में हैं। देश में जोड़तोड़ की जिस तरह की राजनीति का दौर चल रहा है उसमें देवेगौड़ा सरीखे व्यक्ति को प्रधानमंत्री और मधाुकौड़ा जैसे निर्दल विधायक को मुख्यमंत्री बनते हमने देखा ही है। अपनी ब्याहता पत्नी का सारा जीवन वैधयव्य सरीखा बना देने वाला और इसके लिए देश के कानून के समक्ष शपथ ले-लेकर बार-बार झूठ बोलने वाला व्यक्ति प्रधानमंत्री बनना चाह रहा है, बलात्कार जैसे गर्हित अपराधा को नौजवानों द्वारा जोश में आकर की गई मामूली गलती बताने वाला प्रधानमंत्री बनना चाह रहा है और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा संरक्षित संस्था चुनाव आयोग को ठेंगा दिखाने वाले नेता भी प्रधानमंत्री बनना चाह रहे हैं तो चिंता स्वाभाविक ही है कि सत्ता पाकर ये अपना कौन सा छिपा हुआ चरित्र प्रकट करेंगें, कहना मुश्किल है। ( हमसमवेत)
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