Sunday, January 11, 2015

स्त्री अधिकारों की तस्वीर इतनी भयावह क्यों ? -- सुनील अमर

    कुछ ताजा खबरें हैं जिन्हें इकठ्ठा करके पढ़ना स्त्री अधिकारों के लिए भयकारी और मर्द जाति के लिए शर्मिन्दगी का बायस बनता है। ईरान में गत सप्ताह एक युवती को इसलिए फाॅंसी पर लटका दिया गया क्योंकि उससे बलात्कार की कोशिश कर रहे एक पूर्व सरकारी जासूस को उसने मार दिया था, हरियाणा में एक ऐसा व्यक्ति मुख्यमंत्री बन गया है जिसका सार्वजनिक रुप से मानना है कि बलात्कार के लिए औरतें खुद जिम्मेदार होती हैं, केन्द्र में सत्तारुढ भाजपा की मोदी सरकार ने अदालत को अपना नजरिया बताया है कि यदि किसी अविवाहित स्त्री के बच्चा है तो उसे यह बताना लाजिमी होगा कि यह बच्चा बलात्कार से तो नहीं पैदा हुआ है और उत्तर प्रदेश की पुलिस ने लिखित में स्वीकार किया है कि जीन्स पहनने और मोबाइल फोन इस्तेमाल करने के कारण ही लड़कियों के साथ ज्यादातर बलात्कार होता है! स्त्रियों के बारे में ऐसी ही राय बहुत से न्यायाधीशों, विचारकों तथा साधु-सन्तों की भी है। बलात्कार के कई मामलों में जेल में बन्द एक स्वयंभू बापू ने तो दिल्ली निर्भया कान्ड के बाद यह कह कर अपने चरित्र का परिचय दे दिया था कि- ‘लड़की को बलात्कारियों के पैरों में पड़ जाना चाहिए था तो उसकी हत्या न होती!’ हालांकि तब तक उनके बलात्कार के मामलों का खुलासा नहीं हुआ था।
 इस क्रम में ताजा विचार उत्तर प्रदेश पुलिस का प्राप्त हुआ है। सूचना के अधिकार के तहत जिला पुलिस प्रमुखों से जानकारी मांगी गई थी कि उनके जिले में बलात्कार के कितने मामले हैं, उनके निराकरण के लिए क्या कदम उठाए गए और इस अपराध के कारण क्या हो सकते हैं। जवाब में प्रदेश की लगभग सभी जिला पुलिस ने एक जैसा विचार व्यक्त करते हुए बताया है कि बलात्कार के कारणों में लड़कियों का पहनावा, पश्चिमी संस्कृति का अनुकरण और मोबाइल फोन प्रमुख कारण है। चाहिए तो यह कि सूचना कार्यकर्ता लोकेश खुराना उत्तर प्रदेश पुलिस से एक जानकारी और मांगते कि जब पश्चिमी संस्कृति, पहनावा और मोबाइल फोन नहीं थे तब क्या बलात्कार नहीं होते थे? ‘तहलका’ पत्रिका ने भी गत वर्ष महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों पर दिल्ली के पुलिसवालों का साक्षात्कार प्रकाशित किया था जिसका निष्कर्ष था कि सिर्फ दो पुलिस वालों को छोड़कर शेष सभी की राय थी कि जो महिलाएं बलात्कार की शिकायत दर्ज कराने आती हैं वे या तो अनैतिक, स्वच्छन्द स्वभाव की चरित्रहीन होती हैं या वेश्याएं होती हैं और वे पुरुषों को ब्लैकमेल करना चाहती हैं !
  स्त्रियों के प्रति होने वाले अपराधों में तुलनात्मक रुप से सारी दुनिया में बढ़ोत्तरी हुई है। बचाव के नये और ज्यादा सक्षम कानूनों, आपराधिक जांच  प्रणाली में हुआ वैज्ञानिक विकास तथा समाज में आई जागरुकता और खुलेपन के बावजूद स्थिति का बयान प्रख्यात नारीवादी लेखिका तस्लीमा नसरीन के शब्दों में किया जा सकता है कि- ‘औरतों के लिए कोई भी देश सुरक्षित नहीं।’ कहने को तो हम पहले से कहीं ज्यादा सभ्य हुए हैं और दिनोंदिन ज्यादा सभ्य होते भी जा रहे हैं लेकिन स्त्रियों के प्रति हमारा नजरिया और ज्यादा तंग होता जा रहा है। पिछले कई हजार वर्षों की तरह हम आज भी औरतों को दोयम दर्जे का इन्सान ही मानते-समझते हैं। ब्रिटेन को लोकतन्त्र की जननी कहा जाता है लेकिन वहां भी स्त्रियों को वोट देने का अधिकार अभी कुछ दशक पूर्व ही मिला है और इसी तरह अमेरिका में भी। ईसाई धर्म को बहुत उदार और परोपकारी बताकर प्रचार किया जाता है लेकिन उसका स्पष्ट मानना है कि स्त्री का कोई अलग अस्तित्व नहीं बल्कि उसे तो मर्द की पसली से बनाया गया है।
  बलात्कार अगर कमअक्ल, सिरफिरे या अपराधियों द्वारा ही किया जा रहा होता तो माना जाता कि इनकी शिक्षा-दीक्षा और रहन-सहन दुरुस्त किए जाने की जरुरत है लेकिन जैसा कि आॅकड़े उपलब्ध हैं, मर्दों के सारे प्रकार बलात्कार में शामिल पाए जाते हैं। न्यायाधीश, उच्च नौकरशाह, वरिष्ठ राजनेता, सांसद,विधायक, लेखक,पत्रकार, डाॅक्टर, प्रोफेसर, सफल उद्योगपति और दुनिया की बड़ी आबादी को मोहित और प्रभावित करने वाले साधु-सन्यासी भी बलात्कार के जुर्म में जेलों में बन्द हैं। इस प्रकार माना यह जाना चाहिए कि यह प्रवृत्ति व्यक्ति में विचारों के कारण पनपती है। विचार की जहां तक स्थिति है उसमें उपर गिनाई गई श्रेणी के लोगों के विचार ही इस कृत्य को पोषित करने का काम करते हैं। संत कहे जाने वाले कवि तुलसीदास का भी ऐसा ही मत है- ‘जिम स्वतन्त्र होय बिगरैं नारी।’ कल्याणी मेनन और शिवकुमार द्वारा वर्ष 1996 में लिखित पुस्तक ‘भारत में स्त्रियां’ में औरतों के खिलाफ हिंसा के बारे में 109 न्यायाधीशों के साक्षात्कार का निचोड़ दिया गया है जिसमें 48 प्रतिशत न्यायाधीशों का मानना था कि कुछ मौंकों पर पति द्वारा पत्नी को थप्पड़ जायज होता है, 74 प्रतिशत का मानना था कि परिवार को टूटने से बचाना औरत का पहला सरोकार होना चाहिए चाहे उसके लिए उसे हिंसा का सामना क्यों न करना पड़े। 68 प्रतिशत का मानना था कि औरतों का उत्तेजक कपड़े पहनना यौन हमले को बुलावा देना है तथा 55 प्रतिशत का मानना था कि बलात्कार के मामले में औरत के नैतिक चरित्र की अहमियत है ! हो सकता है कि इसी दृष्टिकोण के चलते देश की अदालतों में बलात्कार के एक लाख सात हजार एक सौ सैंतालिस से अधिक मुकदमें लटके पड़े हैं। 333 मामले तो सर्वोच्च न्यायालय में ही पड़े हैं। राजनेताओं की सोच तो और भी भयानक है। तृणमूल कांग्रेस के विधायक और अभिनेता चिरंजीत ने दो साल पूर्व बलात्कार की एक घटना पर अपनी राय व्यक्त की थी कि लड़कियों का बलात्कार उनकी छोटी स्कर्ट की वजह से होता है और इसके लिए महिलाऐं खुद ही जिम्मेदार होती हैं। दो साल पूर्व मध्य प्रदेश के उद्योगमंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने भी अपनी मानसिकता उजागर की थी कि महिलाऐं लक्ष्मण रेखा लाघेंगीं तो रावण आएगा ही तो गत वर्ष छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री ननकी राम कॅवर ने एक सरकारी संरक्षणगृह में आदिवासी गरीब लड़कियों के साथ हुए बलात्कार के मामले पर कहा था कि बलात्कार के लिए ग्रह-नक्षत्र जिम्मेदार होते हैं! समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव कहते हैं कि लड़कों से गलती हो ही जाती है! इससे भी कमाल का दृष्टिकोण संघ प्रमुख मोहन भागवत का है कि ‘रेप भारत में नहीं इन्डिया में होता है’!
  दुनिया की आधी आबादी को आज भी इन्सान नहीं माना जाता। उसका शारीरिक ही नहीं मानसिक शोषण भी कदम-कदम पर किया जाता है। एक ताजा सर्वेक्षण बताता है कि दिल्ली में 1669 स्कूली लड़कियों पर महज एक शौचालय की सुविधा है। ऐसे में जरुरत पड़ने पर लड़कियां खुले में नहीं तो और कहां जाऐंगी और फिर मर्दवादी सोच वाले कहेंगें कि ये बलात्कारियों को आमन्त्रित करती हैं! सरकारें महिला अधिकारों की बातें तो करती हैं लेकिन सच्चाई देखिए कि देश की पुलिस में महिलाऐं सिर्फ 5 प्रतिशत ही हैं। नागरिक अधिकारों की सबसे प्रबल पैरोकार और संरक्षक अदालतों के कार्यस्थल में भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं और गत वर्ष इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने महिला वकीलों और वादकारियों के साथ हो रही घटनाओं से चिन्तित होकर एक अधिकारी की तैनाती की जो ऐसे मामलों को दर्ज कर सके। जिस तरह कार्यस्थल पर महिलाओं को पुरुषों से भिन्न आवश्यकता की मानकर संसाधन मुहैया कराए जाते हैं उसी तरह उनके जीवनयापन के प्रत्येक क्षेत्र को जब तक उनके अनुकूल सुरक्षित नहीं किया जाता तब तक उनकी बेहतरी की बात करना महज किताबी ही होगी। 0 0           
   संस्करण: 10 नवम्बर2014

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