Friday, February 25, 2011

'' कहाँ पहले जैसे जमाने रहे अब ! '' -- सुनील अमर

न शिकवे, शिकायत, बहाने रहे अब,
कहाँ पहले जैसे जमाने रहे अब !

वो ख्वाबों में मिलना, किताबो में मिलना,
वो चंदा पे मिलना, सितारों पे मिलना ,
वो मिलने के सौ-सौ बहाने भी गढ़ना ,
वो अपनों से बचना, वो गैरों से बचना ।

हर इक साँस में तुम, हर इक आस में तुम,
वो रो-रो के हॅंसना, वो हॅंस कर सिसकना।

बहकती सी पुरवा जो आई हुई है,
मिलन का संदेशा ये लाई हुई है ,
तेरे ज़िस्म को छूकर आई हुई है,
ये महकी है, थोड़ा लजाई हुई है।

न दिन-रात अपने, न जज्ब़ात अपने ,
न ख्वाबों पे बस, न ख्यालात अपने ।
अज़ब सा नशा एक तारी हुआ था
मेरे होश पर खूब भारी हुआ था ,
कहाँ इल्म था ये गुलाबों का टुकड़ा,
मेरी जिन्दगी पर दुधारी हुआ था ।

अचानक कि जैसे कहर टूटता है ,
शबे-वस्ल पर ज्यूं सहर टूटता है,
ये बरसों का रिश्ता भी कुछ ऐसे टूटा,
हवाओं से जैसे शज़र टूटता है ।


वो बचकर निकलना, वो कतरा के जाना,
वो रस्ते में मिलने पे आखें चुराना ,
वो खुद से सहमना, वो खुद में सिमटना ,
वो सूखे गले से बहाने बनाना ।

मैं सबसे परेशां , तू मुझसे परेशां ,
अचानक हुआ क्या, तू गाफ़िल, मैं हैरां !


ये बरसों की चाहत को बस गर्द समझा,
मेरे दिल के ज़ज्बात को सर्द समझा ,
न हमराज समझा , न हमदर्द समझा ,
मुझे तुमने इस दर्जा खुदग़र्ज समझा !

जरुरी नहीं था कि हम साथ रहते,
मुहब्बत पे रिश्तों का कुछ नाम रखते,
मुझे तेरी खुशियों से निस्बत थी हमदम,
ये जां भी मैं देता , तुम इक बार कहते !
ये दिल टूटने पर मैं रो भी न पाया,
जो भर आयीं आँखें तो आंसू छिपाया,
तुम्हारी कसम थी, सो उसको निभाया,
कहो तुम, कोई आज तक जान पाया ?

बहुत सोचता हूँ तुम्हें भूल जाऊॅं,
तुम्हारी तरह, कोई दुनिया बसाऊॅं,
तुम्हारी तरह ही हॅंसू, खिलखिलाऊॅं,
मैं खुश हूँ , बहुत खुश हूँ ,सबको दिखाऊॅं,

मगर दिल है अब भी तुम्हें चाहता है,
तुम्हें चाहता है............
तुम्हें चाहता है........

मैं फ़नकार, अब अपना फ़न बेचता हूँ ,
मैं नाकाम उल्फ़त का तन बेचता हूँ ,
ये ग़ज़लें , ये नज़्में , क़ता ये रुबाई ,
ये लिख-लिख के मैं अपना मन बेचता हूँ ।



ये सदमा मेरे दिल में घुटता रहा है,
ग़ज़ल बन के लफ़्जों में ढ़लता रहा है,
यही मेरा रोना है - गाना यही है ,
मेरी जिन्दगी का तराना यही है ।

कहाँ मेरे जैसे दीवाने रहे अब !
कहाँ पहले जैसे जमाने रहे अब !
न शिकवे, शिकायत, बहाने रहे अब !!
oooo

3 comments:

  1. Hmmm! Sunil Ji, ab kya kahun! dil ko chhu gayi ye Nazm!Apki puri kahani lagti hai ye to ! Waise apka to koyi aisa anubhav kabhi raha nahi? ya...?
    khair! bahut hi badhiya hai! Sadhuvaad !!

    ReplyDelete