हफ्ते की मुलाकात में इस बार हमारे बीच हैं स्त्री अधिकारों के मामलों में बिलकुल अलग ढंग की सोच रखने वाली शीबा |शीबा असलम फहमी के लिए धर्म की अपनी परिभाषाएं हैं ,शीबा असलम फहमी को हम देश की उन चंद महिलाओं में गिन सकते हैं जो न सिर्फ मुस्लिम बल्कि हर तबके की महिलाओं के लिए अपनी कलम और अपनी जबान से संघर्ष कर रही हैं न सिर्फ संघर्ष कर रही हैं बल्कि स्त्री विरोधी ताकतों को पराजित भी कर रही हैं |आइये बात करते हैं शीबा से |इस पूरी बातचीत को आप आडियो फार्मेट में हमारी वेबसाईट में “हफ्ते की मुलाकात” कालम में सुन भी सकते हैं--आवेश तिवारी
आवेश तिवारी -शीबा आप क्या मानती हैं तीसरी दुनिया के देशों में ” जेंडर जेहाद “कितना सफल रहा है |और इनके सफल या असफल होने की वजह क्या है ?
शीबा असलम फहमी – तीसरी दुनिया के देशों में जेंडर जेहाद यानि नारीवादी आन्दोलन बहुत अच्छा चल रहा है ,जब हम तीसरी दुनिया के देशों की बात करते हैं तो ये वो देश हैं जो निजी विषमताओं से अनवरत गुजर रहे हैं ,जब हम स्त्री विमर्श की बात करते हैं तो ये अमेरिका की पश्चिमी देशों की गोरी महिलाओं का स्त्री विमर्श नहीं होता ,ये हमारा, हमारी मिटटी से उपजा स्त्री विमर्श है ,हमारे हालात के हिस्साब से जो स्त्रियों की मूलभूत समस्याएं हो सकती हैं हल हो सकते हैं उनमे से हल ढूंढ़ता हुआ स्त्री विमर्श है ,और निश्चित तौर पर ये सफल हो रही है अगर कोई दीवार २०१ हथौड़ों में टूटती है तो पहले के २०० हथौड़ों के वार को नाकाम नहीं कहा जा सकता |,उन २०० हथौड़ों की मार की वजह से २०१ वा हथौड़ा कामयाब हुआ है |कोई भी समस्या हो इस धरती पर हम सबका योगदान समस्या और समाधान के बीच की दूरी के गप को थोडा कम करने का हो सकता है ,हमारे पास या किसी के पास इन समस्याओं का पूरा हल नहीं होता
आवेश तिवारी -आपको क्या लगता है इस्लाम मुल्लाओं और हिंदुत्व पंडितों के चंगुल से कब तक मुक्त हो पायेगा ,क्या इस स्थिति से आप कभी निराश होती हैं
शीबा असलम फहमी - मै फिर कहूँगी मै बिलकुल निराश नहीं होती.पिछले जमानों में जब हम सोच नहीं सकते थे हमारे पास भाषा नहीं थी अधिकारों की ,मगर आज समय बदल रहा है ,मुझे आपके शब्द पर आपत्ति है जो आपने पंडितवाद कहा ,मुझे ब्राम्हणवाद ज्यादा उपयुक्त शब्द लगता है कई पंडित ऐसे हैं जो खुद ब्राम्हणवाद से पीड़ित हैं ,बहुत से पंडित हैं जो खुद ब्राम्हणवाद के खिलाफ हैं ,इत्फकान हम जिस किसी परिवार में पैदा हुए उसकी वजह से हम उसे कुछ नहीं कह सकते ,यही बात मौलानाओं के सम्बंध में भी मै कहना चाहूंगी कि ये पहचान करनी चाहिए की प्रगतिशील मौलाना कौन हैं ? और वो इसी समाज में हैं ,और बहुत सारे हैं ,अभी जनवरी की बात है अब तक कहा जाता था कि मुसलमान लड़कियां गैर – मुस्लिम लड़कों से शादी नहीं कर सकती ,लेकिन जर्मनी के एक मौलाना ने फतवा दिया की नहीं मुस्लिम लड़कियां अगर किसी ऐसे लड़के से मोहब्बत करती हैं जो इस्लाम से बाहर का है तो वो उससे शादी कर सकती हैं |अगर आप देखें तो ये आज के समय में क्रांतिकारी बात है |मुझे लगता है खासकर औरतें ,समाज का गैर ब्राम्हणवादी तबका जिनमे ब्राह्मण भी हों और मौलाना मिल बैठे तो कई समस्याओं का समाधान संभव है |मुझे लगता है कि इन समस्याओं और इन सस्याओं के हल के जर्नलाइजेशन से परहेज करना चाहिए
आवेश तिवारी -आज देश में मुस्लिम महिलाओं में साक्षरता का प्रतिशत बेहद कम है ,आपको क्या लगता है ऐसा क्यूँ है इसके पीछे कौन सी वजहें हैं
शीबा असलम फहमी -देखिये देश में जो मुस्लिम महिलाओं में साक्षरता का प्रतिशत था वो पहले से बेहतर है ,जब उनको कम्पेयर करते हैं तो हाँ कम हैं ,लेकिन जब हम इनकी पहले कि अपेक्षा बेहतरी को देख रहे हैं तो हमें उन कारणों को चिन्हित करके जिनकी वजह से वो बेहतर हुआ है ,उन पर और काम करना चाहिए ,दूसरी बात ये है कि तमाम पुरुष सत्तात्मक समाज में जहाँ पर अधिकतर सत्ता ख़ास तौर से धार्मिक सत्ता मर्दों के हाँथ में होती है ,औरतों की उपयोगिता इतनी संकुचित कर दी जाती है कि आज भी हमारे मौलाना कह देते हैं कि औरतों को पार्लियामेंट में न जाकर ,पार्लियामेंट में जाने लायक लड़के पैदा करने चाहिए,ये तो प्लूटोनिक तर्क है| प्लूटो ने एक जमाने में कहा था कि औरतों को चाहिए की बलशाली और समाज उपयोगी मर्द पैदा करें |,ये इस्लाम पूर्व की एक धारणा है ,आज मौलाना इसी तरह सोचते हैं ,बात करते हैं, और मीडिया उनको कवर कर रहा है |लेकिन हाँ ,हम बहुत मजबूती के साथ उनका जवाब दे रहे हैं ,उनको मुंहतोड़ जवाब दे रहे हैं, उनको चैलेन्ज कर रहे हैं और उनकी खिल्ली उडा रहे हैं ,ये सच है आज हम जिस स्थिति में हैं उससे बहुत अधिक आशान्वित हैं |
आवेश तिवारी -शीबा अगर हम हिंदुस्तान की बात करें तो आपको क्या लगता है महिलाओं में जो विचारधारा से जुडी गुलामी है वो कब तक ख़त्म हो पायेगी ,इसके लिए किस किस्म के संघर्ष किये जाने की जरुरत है |
शीबा असलम फहमी – मैंने अभी हाल में लिखा है ,समाज जिन हथियारों से लैस करके बेटों को, लड़कों को दुनिया का सामना करने के लिए उतारता है जब उन हथियारों से बेटियों को भी लैस करने लगेंगे तो वो भी उसी मजबूती से दुनिया का सामना करेंगी |जब कोई पुरुष अपने घर ,बाहर या समाज में किसी भी स्तर पर किसी उलझन में फंस जाता है तो वो जिस साहस के साथ और जिस आत्मविश्वास के साथ उन परिस्थितियों का सामना करता है उस साहस और आत्मविश्वास के पीछे जो कारण काम करते हैं अगर औरत के लिए भी उन वजहों से जुडी ताकत होगी तो वो कभी भी अपने आत्मसम्मान के साथ समझौता नहीं करेंगी ,चाहे वो पति के साथ हो ,ससुराल में हो ,सास के साथ हो,काम करने की जगह हो या समाज में कहीं पर भी हो |आप देखिये कि आप लड़कियों को हाथ- पैर तोड़कर लंगड़ा और लूला बनाकर समाज में झोंक देते है कि जाओ समाज का सामना करो ,चाहे उन्हें आप ससुराल भेजते हों या काम करने की जगह पर भेजते हों |आप उसे शिक्षा तो दे देते हैं क्यूंकि सरकारी तौर पर शिक्षा मिल रही हैं आप उसे संपत्ति में हिस्सा क्यूँ नहीं देते ,उसे मजबूत बनाइये उसके पास इतने साधन हों कि कल को अगर उन्हें अपने पति से अलग होना पड़े उन्हें अपना काम छोड़ना पड़े तो कम से कम उनके पास पेट भरने को तो हो ,जब ऐसा हुआ तो वो मजबूती से समाज में उतरेंगे और वो भी मजबूती से अपने से फैसले करेंगी |
आवेश तिवारी -शीबा आज हम अल्पसंख्यक महिलाओं की बात करते हैं शहरों कस्बों की महिलाओं की बात करते हैं उनके सरोकारों उनकी समस्याओं की बात करते हैं ,लेकिन गाँवों में ,टोलों में रहने वाली महिलाएं हैं ,आदिवासी महिलायें हैं उनकी चर्चा बहुत कम होती है आपको क्या लगता है इसकी वजहें क्या हैं ?
शीबा असलम फहमी -देखिये ,नारीवादी आन्दोलन देश की ग्रामीण आबादी में लीडरशिप डेवलपमेंट प्रोग्राम का सफलतापूर्वक क्रियान्वयन कर रहा है| दूर दराज के क्षेत्रों में जाकर वहां की औरतों को उनके अधिकारों को बता रहा है कि जिन विषमताओं से आप गुजर रही हैं वो विषमतायें आपकी किस्मत नहीं हैं,संसाधनों का आप तक नहीं पहुंचना भगवान की परीक्षा नहीं है इसकी वजह सरकार और दुनिया भर के कार्पोरेट्स हैं, इसमें सिर्फ समाज ही शामिल नहीं है |आज राजस्थान में जो पानी की समस्या है वो औरतों से सीधी जुडी समस्या है ,जिसमे कार्पोरेट्स भी शामिल है ,जिस तरह से जंगल ख़त्म हो रहे हैं उनका सीधा असर गाँव की महिलाओं पर पड़ रहा है उनकी रसोई से है |जरुरत इस बात की है कि इन आदिवासी महिलाओं ,गाँव की महिलाओं में नेतृत्व क्षमता विकसित की जाए ,उनका नेता दिल्ली से क्यूँ आएगा, सिविल सोसायटीज को इसके लिए आगे आना होगा |
आवेश तिवारी – शीबा आपको लगता है कि नहीं मीडिया भी महिलाओं को लेकर दोहरे मापदंड अपना रहा है ,नोयडा में किसी देर रात की पार्टी से घर लौट रही महिला के साथ होने वाली छेड़खानी शुर्खियाँ बन जाती हैं लेकिन दूर –दराज के गाँवों कस्बों में रोज बरोज होने वाली महिला उत्पीडन से जुडी गंभीर ख़बरें अन्दर के पेजों पर भी जगह नहीं पाती |आपको क्या लगता है इसकी वजहें क्या हैं और ऐसा है की नहीं ?
शीबा असलम फहमी – मै इसको सिर्फ महिलाओं से जोड़कर नहीं देखती मैं इसको मीडिया के काम करने के तरीके से जोड़ कर देखती हूँ ,मईसको मीडिया की काहिली से भी जोड़कर देखती हूँ ,दिल्ली क्यूँ छाया रहता है ख़बरों में ?दिल्ली इस लिए छाया रहता है क्यूंकि आपको भाग दौड़ नही करनी पड़ती ,आठ दस किलोमीटर जाकर ख़बरें और सुर्खियाँ ले आई जाती हैं ,अब आप देखिये दिल्ली की सर्दी को ही कितना ग्लेमराइस्द किया जाता है जबकि बांदा ,कानपुर ,लखनऊ में पड़ने वाली ठण्ड दिल्ली से कहीं बहुत ज्यादा होती है मीडिया सुविधाभोगी है ,कभी वो संसाधनों का रोना रोता है तो कभी किसी अट्टालिका पर खड़ा होकर तेज हवा को दिखलाता हुआ सर्दी का आतंक बयां करता है जबकि असल शरद जहाँ होती है वहां मौतें भी होती है पर अफ़सोस ख़बरें नहीं होती ,आप किसी उत्पीडित महिला को उनके स्टूडियो पंहुचा दीजिये ,फिर देखिये क्या खबर पैदा होती है .. Read this interview on www.network6.in (Also in Audio)
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Bahut badhiya aur prernadayak hai yah Vaarta!
ReplyDeleteHausla badhati hai!