' ये सरकारी दीवारें क्यों रंगी हैं पुती-पुताई हैं,
ये जगह-जगह क्यों आयोजन शहरों में बहुत सफाई है ,
ये जन-गन-मन बज रहा है क्या छब्बीस जनवरी आई है ?
उन सीलन भरे गोदामों से गाँधी को आज निकाला है,
नेहरु कैसा मुस्काया है , उसके ऊपर भी माला है ,
ये एक तरफ से नेता जी, आजाद, भगत हैं ,बिस्मिल हैं ,
जैसे इन सबका भव्य जनाजा एक ही साथ निकाला है.
इस लोकतंत्र के शासन से क्यों भारत माँ शरमाई है .
छब्बीस जनवरी आई है ..
पर ऐन वक्त पर यह झंडा कमबख्त कहाँ खो गया आज,
परसों साहब ने दफ्तर में इससे जूता चमकाया था ,
कुछ कम रुका था कल घर पर , रस्सी की सख्त जरूरत थी ,
बस इसी लिए तो साहब ने डोरी भी घर भिजवाया था ,
यह देश है सारी जनता का , जनतंत्र अब तेरी दुहाई है .
छब्बीस जनवरी आई है ?
( द्वारा- सुनील अमर 09235728753 )
अति सुन्दर अभिव्यक्ति हैँ। बधाई! -: VISIT MY BLOG:- ऐसे मेँ क्यूँ रुठ जाती हो?......पढ़ने के लिए इस पते परक्लिक कर सकते है।
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