Saturday, August 14, 2010

BOL KI LAB AZAD HAIN TERE.......

( लगभग 25 साल पहले यह कविता मैंने लिखी थी, और तब फ़ैजाबाद से प्रकाशित हो रहे दैनिक 'नये लोग' ने इसे बहुत प्रमुखता से प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित किया था. मेरे कई मित्रों ने कहा की आज यह और भी प्रासंगिक है . बहरहाल राष्ट्रीय ध्वज के प्रति प्रयुक्त शब्दों के लिए क्षमा याचना सहित --)
' ये सरकारी दीवारें क्यों रंगी हैं पुती-पुताई हैं,
ये जगह-जगह क्यों आयोजन शहरों में बहुत सफाई है ,
ये जन-गन-मन बज रहा है क्या छब्बीस जनवरी आई है ?
उन सीलन भरे गोदामों से गाँधी को आज निकाला है,
नेहरु कैसा मुस्काया है , उसके ऊपर भी माला है ,
ये एक तरफ से नेता जी, आजाद, भगत हैं ,बिस्मिल हैं ,
जैसे इन सबका भव्य जनाजा एक ही साथ निकाला है.
इस लोकतंत्र के शासन से क्यों भारत माँ शरमाई है .
छब्बीस जनवरी आई है ..
पर ऐन वक्त पर यह झंडा कमबख्त कहाँ खो गया आज,
परसों साहब ने दफ्तर में इससे जूता चमकाया था ,
कुछ कम रुका था कल घर पर , रस्सी की सख्त जरूरत थी ,
बस इसी लिए तो साहब ने डोरी भी घर भिजवाया था ,
यह देश है सारी जनता का , जनतंत्र अब तेरी दुहाई है .
छब्बीस जनवरी आई है ?
( द्वारा- सुनील अमर 09235728753 )

1 comment:

  1. अति सुन्दर अभिव्यक्ति हैँ। बधाई! -: VISIT MY BLOG:- ऐसे मेँ क्यूँ रुठ जाती हो?......पढ़ने के लिए इस पते परक्लिक कर सकते है।

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