अभी चंद दिनों पहले कि बात है । वह दिल्ली की जानलेवा गर्मियों की एक दोपहर थी । चौराहे पर चारों तरफ बेशुमार भीड़ । ट्रेफिक का सिपाही कत्थक नृत्य की मुद्रा में व्यस्त । पसीने से लथपथ । उधर सड़क के एक कोने में एक जर्जर वृद्धा बहुत देर से सड़क पार करने की कोशिश में हलकान । मुझ जैसे सैकड़ों लोग इस इंतजार में कि बत्ती हरी हो तो गाड़ी सड़क के पार करें । मन बार -बार कचोट रहा था कि कैसे उस वृद्धा को सड़क पार कराएँ । पीछे इतनी गाड़ियाँ कि लाइन से निकलना संभव नहीं । तब तक मैंने देखा कि वह सिपाही अपनी कमीज़ की आस्तीन से चेहरे का पसीना पोंछते हुए चबूतरे पर से उतरा। भीड़ को उसके हाल पर छोड़ कर वह वृद्धा के पास गया । उसे बांह से सहारा देते हुए सड़क पर कराया। फिर चुपचाप अपनी ड्यूटी पर हाज़िर हो गया । ट्रेफिक पूर्ववत चलने लगा ।
मैं कई दिन तक अपने पर शर्म करता रहा ! सोच लेता हूँ तो आज भी ।
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काश! सभी लोगों मे ऐसा ही जज्बा होता?
ReplyDeleteइस नए सुंदर चिट्ठे के साथ आपका ब्लॉग जगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें