Wednesday, August 04, 2010

फ़रेब-ए-आज़ादी --शायर -हाफिज़ जालंधरी

शेरों को आज़ादी है , आज़ादी के पाबंद रहें ,
जिसको चाहें चीरें -फाड़ें , खाए, पियें आनंद रहें।
साँपों को आज़ादी है हर बसते घर में बसने की,
इनके सर में जहर भी है और आदत भी है डसने की ।
पानी में आज़ादी है घड़ियालों और नहंगों को ,
जैसे चाहें पालें ,पोसें ,अपनी तुंद उमंगों को ।
इंसानों में सांप बहुत हैं कातिल भी जहरीले भी ,
इनसे बचना मुश्किल है, आज़ाद भी हैं फुर्तीले भी ।
इन्सां भी कुछ शेर हैं बाकी भेन्डों की आबादी है,
भेंडें सब पाबंद हैं लेकिन शेरों को आज़ादी है ।
भेंडें लतादाद हैं लेकिन सबको जान के लाले हैं,
इनको ए तालीम मिली है भेंडिया ताकत वाले हैं ।
शेर हैं दावेदार किहम से अमन है इस आबादी का ,
भेंडें जब तक शेर न बन लें नाम न लें आज़ादी का ।
पेट फटे पड़ते हैं , इनके ए मुंह फाड़े बैठे हैं ,
हर बाज़ार में हर मंडी में झंडे गाड़े बैठे हैं।
खा जाने का कौन सा गुर है जो इन सबको याद नहीं ,
जब तक इनको आज़ादी है कोई भी आज़ाद नहीं ।
इसकी आज़ादी कि बातें सारी झूठी बातें हैं,
खा जाने की तरकीबें हैं पी जाने की घातें हैं।
जब तक ऐसे जानवरों का डर दुनिया पर ग़ालिब है ,
पहले मुझसे बात करे जो आज़ादी का तालिब है । ।


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