Wednesday, October 17, 2012

उ.प्र. सरकार के अंतर्विरोध --- सुनील अमर


देश के सबसे युवा मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार अपने व्यापक अंतर्विरोधों के कारण दिन-ब-दिन न सिर्फ जनता की आकांक्षाओं पर निराशा थोप रही है बल्कि कैबिनेट के शिवपाल यादव व आजम खाँ जैसे कई वरिष्ठ मंत्रियों के उन्मुक्त आचरण की वजह से बार-बार हास्यास्पद स्थिति भी पैदा हो रही है। यह सच है कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इससे पूर्व कभी किसी सरकार में नहीं रहे हैं और इस प्रकार अपने पहले अवसर पर ही वह प्रदेश के इस सर्वोच्च प्रशासनिक दायित्व के पद पर आसीन हैं। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चंद्रशेखर भी अपने लम्बे राजनीतिक जीवन में कभी किसी कैबिनेट में शामिल नहीं हुए थे और सीधे प्रधानमंत्री ही बने थे। स्व. राजीव गॉधी भी पहली ही बार में प्रधानमंत्री बन गये थे। श्री अखिलेश यादव को राजनीतिक व प्रशासनिक अनुभव बहुत कम है। उत्तर प्रदेश जैसे राज्य का मुख्यमंत्री होना गहरे राजनीतिक अनुभव की मॉग करता है जिसकी स्वाभाविक कमी अखिलेश के फैसलों और कैबिनेट पर उनके नियंत्रण में झलकती है।
                प्रदेश में इस बार जब चुनाव में समाजवादी पार्टी को प्रबल बहुमत प्राप्त हुआ तो इस बात पर कई दिनों तक रस्साकशी हुई कि मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव बनें या उनके पुत्र अखिलेश। अखिलेश कहते थे कि नेता जी ही बनेंगें और नेता जी यानी मुलायम कहते थे कि अखिलेश बनेंगें। ये सच्चाई है कि मुलायम सिंह मुख्यमंत्री बनना चाहते थे लेकिन पार्टी की पसंद के बहाने हुआ यह एक पारिवारिक सत्ता हस्तांतरण था। शुरु में ऐसा सोचा जा रहा था कि अखिलेश एक रिमोट कंट्रोल्ड मुख्यमंत्री होंगें लेकिन ऐसा कुछ खास लगा नहीं। अखिलेश के कुछ फैसलों में ऐसा अधकचरापन झलका कि वह उनके और उनके उन्हीं जैसे सलाहकारों का ही काम लगा। बेरोजगारी भत्ता में तमाम तिकड़म और विधायकों को मंहगी कार खरीदवाने जैसे फैसले इसके प्रमाण हैं।
                सरकार में सबसे बड़ी दिक्कत कई मंत्रियों का अत्यन्त वरिष्ठ तथा मुख्यमंत्री का बहुत कनिष्ठ होना है। यह फ़र्क 4-6 साल का नहीं, पीढ़ियों का है। आजम खाँ जैसे नेता समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य और सपा प्रमुख मुलायम सिंह के दोस्त हैं और इसी तरह अवधेश प्रसाद, शिवपाल सिंह यादव, भगवती सिंह तथा अहमद हसन आदि मुलायम सिंह के हमउम्र तथा संस्थापक सदस्य हैं। इसमें शिवपाल तो अखिलेश के सगे चाचा हैं। इतने वरिष्ठों से मुलायम का बतौर मुख्यमंत्री काम लेना तो स्वाभाविक था लेकिन अखिलेश का इन पर वह नियंत्रण नहीं है। शिवपाल तो शुरु से ही उच्छृंखल स्वभाव के रहे हैं। सपा की पिछली सरकार में हुई पुलिस भर्ती धांधली के निर्देशक शिवपाल ही बताये गये थे। इस बार भी उन्होंने पिछले महीने अधिकारियों की एक बैठक में कथित तौर पर यह कहा कि आप सब चोरी तो कर सकते हैं लेकिन डाका नहीं डाल सकते। बाद में, शिवपाल मार्का नेता जैसा करते हैं, उन्होंने भी कह दिया कि मीडिया की कवरेज ही गलत थी। वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री आजम खॉ ने भी गत सप्ताह विधान सभा सचिवालय में एक मीटिंग के दौरान एक वरिष्ठ अधिकारी को असंसदीय शब्दों का प्रयोग कर भगा दिया।
                  यह सच है कि प्रदेश की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ है। कई मामलों में तो निवर्तमान सरकार से भी अधिक खराब हालात हो गये हैं जैसे विद्युत आपूर्ति व मंहगाई। यह कहा जा सकता है कि प्रदेश में बरसात ठीक से न होने के कारण ऐसा हुआ है लेकिन जनता को तर्क नहीं परिणाम चाहिए। जब किसान के घर में गेंहॅू था तो व्यापारी उसे 950 रुपये कुन्तल भी नहीं खरीद रहे थे आज वही गेंहूॅ बाजार में 1600 से 1700 रुपये कुंतल बिक रहा है। प्रदेश में धान रोपाई के समय बरसात नहीं हुई तो बाजार में यूरिया खाद उपलब्ध थी लेकिन जब खाद डालने का समय आया तो बाजार से यूरिया गायब है या फिर कालाबाजारी में बिक रही है। उपर से जले पर नमक छिड़कने का काम मुख्यमंत्री के चाचा शिवपाल यादव कर रहे हैं कि प्रदेश में खाद की भरमार है!पूरे पॉच साल यही परिस्थितियॉ मायावती की बसपा सरकार में थीं। सरकार के सारे आश्वासन, केन्द्र सरकार की आर्थिक सहायता व चीनी निर्यात पर छूट देने के बावजूद प्रदेश के गन्ना किसानों का अरबों रुपया चीनी मिलों के पास बकाया पड़ा है और सरकार का कोई भी मंत्री सुनने को तैयार नहीं है।
                        प्रदेश की मौजूदा कैबिनेट में सबसे बड़े स्वेच्छाचारी मोहम्मद आजम खॉ हैं। अपने कार्य व्यवहार में वे खुद को मुख्यमंत्री ही मानते हैं। उनका एकमात्र गुण सपा में वरिष्ठ मुसलमान नेता होना है। प्रदेश में सपा की प्रत्येक सरकार वे कैबिनेट मंत्री रहे हैं। जितना उन्हें अखिलेश झेल रहे हैं उससे ज्यादा मुलायम सिंह झेल चुके हैं। गत वर्ष उनकी सपा में वापसी हुई है। अखिलेश के लिये यह खेल नया है जबकि उनके पिता मुलायम सिंह इस तरह के कई लोगों को हताश,निराश तत्पश्चात मनाकर वापस पार्टी में ला चुके हैं। आजम खॉ की ही तरह एक समय में बेनी प्रसाद वर्मा भी सपा के लिए अक्सर सिरदर्द हुआ करते थे। बेनी भी सपा के संस्थापक सदस्य थे लेकिन तब अमर सिंह के नियंत्रण में मुलायम सिंह हुआ करते थे इसलिए अमर सिंह ने अन्यान्य कारणों से आजम और बेनी को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया। आजम तो गत वर्ष वापस आ गये लेकिन बेनी प्रसाद वर्मा अब कॉग्रेस में हैं और केन्द्रीय मंत्री का पद सुशोभित कर रहे हैं। बेनी का बड़बोलापन अभी भी गया नहीं हैं और अपनी आदत के अनुसार कॉग्रेस को भी गाहे-बगाहे मुसीबत में डालने का काम करते रहते हैं।
                   समाजवादी पार्टी पहली बार प्रबल बहुमत में आयी है और यह अच्छा ही होता अगर मुलायम सिंह मुख्यमंत्री बने होते। यह पहला अवसर होता जब उन्हें अपनी मर्जी और हनक के अनुसार सरकार चलाने को मिलती। वो एकाध साल में सरकार को पटरी पर लाकर अखिलेश को कुर्सी सौंप सकते थे और अखिलेश भी कुछ दिन कैबिनेट का ककहरा सीख लेते, लेकिन शायद अखिलेश में धौर्य खत्म हो गया था। राजनीतिक सूत्र बताते हैं कि अखिलेश कोई भी रिस्क नहीं लेना चाहते थे। आज स्थिति यह है कि कैबिनेट के तमाम वरिष्ठ मंत्री अपनी मर्जी के हो गये हैं। इसका सबसे बुरा असर नौकरशाही पर पड़ा है और वह प्रभावशाली नेताओं की गणेश परिक्रमा कर अपनी जेबें भरने में लगी है। यह नौकरशाही पिछली सरकार में यही कर रही थी। यही वजह है कि जनता को कोई भी बदलाव दिख नहीं रहा है। मुलायम सिंह अपनी पिछली सरकार में भी आपातकाल में अन्यान्य कारणों से जेल भेजे गये लोगों को लोकतंत्र-सेनानी घोषित कर रुपया 3000 प्रतिमाह की पेंशन देने की तैयारी में हैं। सभी जानते हैं कि आपातकाल में महज राजनीतिक व्यक्ति ही नही ज्यादातर अपराधी ही जेल भेजे गये थे। अपनी पिछली सरकार में जब मुलायम सिंह ने ऐसा किया था तो भी अपराधी तत्त्वों द्वारा लाभ उठाने की शिकायतें हुई थी। असल में मुलायम सिंह का यह प्रयास महज कॉग्रेस को चिढ़ाने के लिए था। सभी जानते हैं कि कॉग्रेस ने ही आपातकाल लगाया था। मुलायम के ऐसा करने से यह बात लगातार चर्चा में रहेगी। सरकार चाहे कितनी भी बढ़िया नीतियॉ बना रही हो, उद्योग धन्धों को बढ़ावा दे रही हो तथा यमुना एक्सप्रेस वे बना रही हो, आम आदमी तो यह देखता है कि उसके रोटी, कपड़ा और मकान का क्या हुआ? वह यह जानना चाहता है उसके बच्चों की शिक्षा व रोजी के लिए क्या संभवनायें इस सरकार ने पैदा की हैं। यह अफसोसजनक ही है कि अखिलेश यादव की सरकार 'फर्स्ट इम्प्रेशन' के तौर पर ऐसा कुछ भी नहीं कर सकी है। मुलायम सिंह के राजनीतिक गुरु डॉ. राम मनोहर लोहिया कहा करते थे कि ' जिन्दा कौमें पॉच साल इन्तजार नहीं करतीं '। मुलायम सिंह को भी राजकाज सुधारने के लिए दखल देना ही चाहिए अन्यथा हो सकता है कि पॉच साल बाद जनता दुबारा इंतजार करने को राजी न हो! 0 0 

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