मेरे प्यारे देशवासियों ......
आज आजादी को याद करने का दिन है। आजादी की कीमत वही समझ सकता है जो गुलाम हो। वैसे ही, जैसे खाने की कीमत वही समझ सकता है जो भूखा हो। यह अच्छी बात है कि हम आप न तो गुलाम हैं और न ही भूखे। यह हमारे देश के महान नेताओं की मेहनत और त्याग का फल है। हमें आपको यह बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि हमने देश के चैतरफा मौजूद खतरों को नेस्तनाबूद कर दिया है। हमने बिना कुछ किए ऐसी-ऐसी चालें चलीं कि हमारे सभी पड़ोसी दुश्मन एक-एक कर परास्त होते चले गए। यह हमारी उस महान नेता की दूरगामी सोच का परिणाम है जिनका त्याग करने में कोई सानी नहीं। वे त्यागियों की परम्परा से आती भी हैं, तभी तो उनहोंने इस देश के महान त्यागी पुरुष का जातिनाम खुशी-खुशी ग्रहण किया। उनके दुश्मन आरोप लगाते हैं लेकिन मैं उनसे पूछना चाहता हॅू कि इतने बड़े देश में क्या किसी और ने भी उस त्यागी पुरुष का जातिनाम अपनाया?
मेरे प्यारे बहनों और भाइयों,
अब मैं कुछ ऐसी महत्त्वपूर्ण बातें आपसे करना चाहूँगा जिन्हें ठीक से समझना आपके लिए बहुत जरुरी है। हमने देश के बाहर की लड़ाईयों को तो सफलतापूर्वक जीत लिया लेकिन हमारे विरोधी लोग हमारी इस कामयाबी से चिढ़कर देश के भीतर ही हमारे शासन के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। वे तमाम तरह के दुष्प्रचार से हमें अस्थिर करना चाहते हैं। मैं कभी-कभी सोचकर हैरान हो जाता हॅूं कि हमारे विरोधी पढ़े-लिखे होकर भी कैसी मूर्खता की बातें करते हैं! आप सभी जानते हैं कि हमारे शासनकाल में देश में इतना ज्यादा अनाज पैदा हो रहा है कि उसे रखने की भी हमारे पास जगह नहीं है। मजबूरी में हमें उसे खुले में रखना पड़ता है। यह हमारे किसानों के सम्पन्न और खुशहाल होने का सबूत है, फिर भी हमारे विरोधी प्रचार करते हैं कि देश में तमाम लोग भूखे हैं! मुझे पता है कि देश में बहुत से लोग भूखे रहते हैं लेकिन वे इस देश की धार्मिक परम्परा और शास्त्रों में वर्णित विधान के तहत ऐसा करते हैं। हमारी धर्मप्राण जनता को मालूम है कि खुद भूखा रहकर दूसरों का पेट भरने से मोक्ष प्राप्त होता है।
चार-पांच लोग हमारी सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हैं और कहते हैं कि सरकार के फलां मंत्री ने इतना धन ले लिया और फला ने उतना। मैं विनम्रतापूर्वक उनसे कहना चाहता हॅू कि सरकार धन से ही तो चलती है। क्या दुनिया में कोई ऐसा भी शासन तंत्र कहीं है जो बिना धन के ही चलता हो? मेरी उदारता देखिए कि मैंने अपने ऐसे विरोधियों को भी कई बार चाय और भोजन पर बुलाकर समझाया कि उनकी जो भी निजी तकलीफ और जरुरतें हो वे बतायें हम पूरी करेंगें और वे सब अपना-अपना काम करें लेकिन वे नहीं मानते। उनमें लाखों रुपया रोज कमा सकने वाले वकील हैं जो वकालत छोड़कर शासन को अस्थिर करने का षड़यंत्र रचने में लगे हैं। उनमें वरिष्ठ अधिकारी हैं जो शानदार नौकरी छोड़कर हमें हिलाने का कुप्रयास कर रहे हैं। एक पेन्शनर हैं जिन्हें बुढ़ापे में आराम करना चाहिए था लेकिन वे षडयंत्रकारियों के सरगना बने हुए हैं। आखिर सरकार क्या किसी को इसलिए पेंशन देती है कि वो सरकार को ही गिराने में उस धन का इस्तेमाल करे? आप स्वयं बताइए कि क्या ऐसे अनैतिक लोगों को सत्ता में आने का मौका मिलना चाहिए? भगवान श्री राम हमारे आदर्श हैं। बचपन में मैं भी रामलीला देखता और खेलता था। मुझे कुंभकरण के चरित्र ने बहुत प्रभावित किया! देश के एक ख्यातिलब्ध कसरतवाले ने पिछले दिनों ऐसे ही एक पवित्र रामलीला मैदान को अपवित्र करने की कोशिश करी। आधी रात का वक्त था। हम चाहते तो उन्हें कारागार में आराम से रख सकते थे लेकिन हमारा बड़प्पन देखिए कि हमने उन्हें वायुमार्ग से उनके घर भिजवा दिया। इस प्रकरण में मैं तहेदिल से शुक्रगुजार हॅू अपने सभी विपक्षी दलों का कि वे ऐसे चंद अलोकतांत्रिक लोगों के बहकावे में नहीं आये। कोई भी समझदार संगठन या व्यक्ति अपने रास्ते में कभी गढ्ढा नहीं खोदता।
एक दूसरा आरोप हमारे विरोधी हम पर मंहगाई बढ़ाने का लगाते हैं। मंहगाई, जैसा कि आप जानते हैं कि नज़रों के दोष के सिवा और कुछ नहीं। आप एक लाख आदमी से कहलवा सकते हैं कि मंहगाई से नुकसान हो रहा है और हम दो लाख आदमी से कहलवा सकते हैं कि मंहगाई से बहुत लाभ हो रहा है। हमारे विद्वान दूरदर्शी कृषि मंत्री ने हमेशा मंहगाई बढ़ने से पहले देश को आगाह किया कि फलां जिंस मंहगी हो सकती है और जैसा कि आप सबने देखा है, देख रहे हैं और देखेंगें कि उनकी बात हमेशा सच साबित हुई। आखिर मौसम विभाग आपको चेतावनी ही तो दे सकता है। वह आपके साथ छाता लेकर तो खड़ा नहीं हो सकता! हमें गर्व है कि दुनिया के किसी और देश में ऐसा दूरअंदेशी कृषि मंत्री नहीं है। हमारे विरोधी कभी भी पूरी बात नहीं बताते और आप सबको अंधेरे में रखते हैं। वे कहते हैं कि हमने डीजल और पेट्रोल का दाम बढ़ा दिया है जिससे जनता परेशान है। वे आरोप लगाते हैं कि हमने हवाई जहाज का पेट्रोल बहुत सस्ता कर दिया है। मैं उनसे सवाल करना चाहता हॅू कि आप देश और देशवासियों को आगे बढ़ते नहीं देखना चाहते? क्या देश की साधारण जनता को हवाई जहाज से यात्रा करने का मौका नहीं मिलना चाहिए? हमने इसी नीति के तहत साधारण पेट्रोल का दाम बढ़ाकर हवाई जहाज के पेट्रोल का दाम काफी कम किया ताकि हवाई यात्रा सस्ती हो सके और हमारे गरीब भाई-बहन भी उसमें बैठकर अपने सपनों को पूरा कर सकें।
हमारे यही विरोधी षडयंत्रपूर्वक प्रचार करते हैं कि देश में गरीबी बढ़ रही है। आप रोज देखते होंगें कि जहां पैसा देकर कोई सामान खरीदना है वहाँ भी इतनी भीड़ रहती है कि आपको लाइन लगानी पड़ती है और हमें पुलिस। क्या यह गरीबी का लक्षण है? बसों में लटकना पड़ता है, रेलगाड़ियों में छतों पर बैठना पड़ रहा है, अस्पताल भरे हैं और मरीज जमीन पर लेटकर इलाज करा रहे हैं। सरकारी दफ्तरों में इतनी भीड़ रहती है कि आपका काम महीनों क्या सालों तक नहीं हो पाता। हमारी अदालतों में करोड़ों लोग पचासों साल तक मंहगा मुकदमा लड़ते हैं, क्या यह सब गरीबी और भुखमरी के चिह्न हैं? कारों की बिक्री बढ़ रही है, मोटर सायकिलें धुआधार बिक रही हैं, हवाई जहाज से यात्रा करने के लिए भी इंतजार करना पड़ रहा है, प्रायवेट स्कूल, प्रायवेट अस्पताल, प्रायवेट बैंक, प्रायवेट कालोनियां और निजी सुरक्षा व्यस्था का बढ़ना क्या यह सब गरीबी के कारण हो रहा है? हमारे विरोधी परस्पर उल्टी बातें करतें हैं और उन्हें जरा भी शर्म नहीं आती। एक तरफ वे कहते हैं कि देश में विकट गरीबी है, दूसरी तरफ कहते हैं कि देश का खरबों रुपया विदेशी बैंकों में जमा है! यहाँ मैं आपको बताना चाहूँगा कि मैंने विदेशी बैंकों में नौकरी की है और मैं जानता हॅू कि सिर्फ अमीर देश ही विदेशों में खरबों रुपया जमा कर सकता है।
बहुत दिन से मैं आप सबसे यह सारी बातें करना चाह रहा था। मेरे अधिकारियों ने सलाह दी थी कि मैं आकाशवाणी और दूरदर्शन की मार्फत आपसे बात कर लूं लेकिन मैंने आपकी गाढ़ी कमाई से प्राप्त सरकारी धन को बरबाद करने के बजाय आज के इस अवसर का इंतजार किया। मैं बहुत देर से गौर कर रहा हॅू कि आप सब बड़े ताज्जुब से मेरे इस भाषण वाले मचान को देख रहे हैं जो इस लाल किले की प्राचीर के बावजूद मजबूत बल्लियों को बांधकर बनाया गया है। साथियों, अभी बीते दिनों जब से देश के एक सूबे में सिर्फ 34 साल पुराना एक लाल दुर्ग एक महिला के नाजुक हाथों ढ़ह गया तब से दुर्ग और किलों की मजबूती से मेरा भरोसा उठ गया है और यह किला तो वैसे भी सैकड़ों साल पुराना है। मैं एक बार फिर आप सबसे गुजारिश करना चाहूँगा कि आप सब मेरी वफादारी और देशभक्ति पर विश्वास बनाये रखें। यह देखिए, मेरे अधिकारियों ने मेरा यह भाषण अंग्रेजी लिपि में लिख रखा है लेकिन मैंने इसे राष्ट्रभाषा में ही पढ़ा! अब एक बार मेरे साथ जोर से बोलिए- जय सोनिया! जय इंडिया!! थैंक्यू वेरी मच। वुई विल मीट अगेन एण्ड अगेन। 00
As my personal view This is the reality of our country I will search email address of PM and send this article for next 26 jan.
ReplyDeleteabsolutely Himmat ka kaam hai aisa likhana
thank you
शुक्रिया प्रमोद जी. आप जैसे पाठक ही हौसला बढ़ाते हैं हमारा. पाठक ही हमारी हिम्मत हैं.
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ReplyDeleteवाह ! अद्भुत !! शानदार !!! कितने विशेषण लगाऊं इस गज़ब के व्यंग्य लेख के लिए ! आज के समय और आज की सरकार का ऐसा कौन सा कारनामा है जिसकी खबर सुनील जी आपने इस लेख में न ली हो ! कितनी गज़ब की आपकी कल्पना शक्ति है और क्या पकड़ है आपकी रोजमर्रा घटनाओं पर.
ReplyDeleteपहले ख़ुद पढ़ी , फिर अपनी दोस्तों को पढवाया, फिर इसका प्रिंट भी निकाल कर रखा कि जब मन हो पढ़ सकूँ.
ईश्वर आपको बहुत लम्बी उम्र दे ताकि हम सबको ऐसे ही खूब उम्दा लेख पढ़ने को मिलते रहें. आमीन !!
आदरणीय सुनील अमर जी
ReplyDeleteसादर अभिवादन !
आपके ब्लॉग पर आ'कर प्रसन्नता हुई ।
भाषण, जो लाल किले से पढ़ा नहीं गया! व्यंग्यात्मक शैली में लिखा आपका यह आलेख बहुत पसंद आया । हर पंक्ति हमारी पीड़ा को व्याख्यायित करने के साथ होंठों पर मुस्कुराहट भी लाने में सफल रही । आभार ! बधाई !
कुछ ऐसी ही पीड़ा मेरी रचना में भी व्यक्त हुई है -
काग़जी था शेर कल , अब भेड़िया ख़ूंख़्वार है
मेरी ग़लती का नतीज़ा ; ये मेरी सरकार है
पूरी रचना के लिए मेरे ब्लॉग पर पधारें … आपकी प्रतीक्षा रहेगी :)
विलंब से ही सही
♥ स्वतंत्रतादिवस सहित श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार