Wednesday, August 31, 2011

सामंती प्रवृत्ति है उत्तर पुस्तिका देखने पर रोक -- सुनील अमर



आजादी की 64वीं सालगिरह पर देश के छात्रों के लिए इससे अच्छा उपहार दूसरा नहीं हो सकता था जो बीते 9अगस्त को सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले द्वारा दिया। न्यायालय ने कहा कि हर छात्र को अपनी उत्तर पुस्तिका को देखने का अधिकार है कि उसके दिए जबाब को परीक्षक ने किस तरह जॉचा है। सही मायने में यह छात्रों को मिली आजादी है जो उन्हें देश की लगभग भ्रष्ट और अप्रासंगिक हो चुकी परीक्षा प्रणाली की तानाशाही से मुक्ति दिलाती है। पूंजीवाद के जितने भी अवगुण ज्ञात हैं,वे सब आज हमारी शिक्षा-परीक्षा प्रणाली में व्याप्त हैं। संभवत: इसीलिए शिक्षण संस्थाओं के इस हास्यास्पद तर्क को सर्वोच्च न्यायालय ने नकार दिया कि जॉची गई उत्तर पुस्तिका छात्रों को दिखाने से समूची परीक्षा प्रणाली ही ध्वस्त हो जाएगी।
               यह प्रश्न सहज ही एक आम आदमी के मन में आता है कि जिसने परीक्षा दी है वह छात्र अपनी जॉची गई कॉपी को देख क्यों नहीं सकता? क्या उसे यह जानने का अधिकार नहीं होना चाहिए कि उसका मूल्यॉकन सही हुआ है या गलत?क्या परीक्षक कोई सुपर नेचुरल चीज है और उससे गलती या भूल हो ही नहीं सकती? और अगर ऐसी गलती या भूल हो गई हो तो क्या उसका परिमार्जन नहीं किया जाना चाहिए?कलकत्ता उच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल माधयमिक शिक्षा बोर्ड,पश्चिम बंगाल उच्चतर शिक्षा परिषद,पश्चिम बंगाल केन्द्रीय स्कूल सेवा आयोग,कलकत्ता विश्वविद्यालय तथा चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट इंस्टीटयूट ऑफ इंडिया नामक संस्थाओं के विरुध्द दायर एक याचिका में 5 फरवरी 2009को फैसला दिया था कि सूचना के अधिकार के तहत कोई भी छात्र अपनी उत्तर पुस्तिका को देखने के लिए मॉग सकता है। इसी फैसले पर सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपनी मुहर लगाकर छात्रों को दशकों से चली आ रही मानसिक प्रताड़ना और सामंती उत्पीड़न से बचने का एक विधिक रास्ता दे दिया।
      यह इस देश की संवैधानिक विडम्बना ही है कि यहाँ एक ही प्रकृति और परिणाम वाले कार्यों के लिए भी अव्वल और दोयम ही नहीं बल्कि जाने कितने मानकों वाली व्यवस्थाऐं विधिक ढ़ॅग से लागू हैं! हमें याद है कि अपनी पढ़ाई के दौरान इंटरमीडिएट तक की गृह परीक्षाओं में हमें अपनी उत्तर पुस्तिकाऐं देखने को दी जाती थीं और उस दिन हम लोगों में बहुत उत्साह होता था। कई बार ऐसा होता था कि छात्र उसमें परीक्षक की गलती पकड़कर अपना प्राप्तांक सही करवाते थे क्योकि गलती किसी से भी हो सकती है। अभी बीते दिनों में हमने देखा कि सरकारी नौकरियों के लिए होने वाली योग्यता परीक्षाओं मसलन समूह 'ग', को आधुनिक प्रणाली ओ.एम.आर. के तहत कराकर परीक्षार्थियों को बाकायदा उत्तर पुस्तिका की एक कार्बन प्रति ही दे दी गई थी कि वे अखबारों में प्रकाशित होने वाले सही उत्तर की सूची से अपने लिखे उत्तरों का मिलान कर देख लें कि उनके साथ परीक्षक ने न्याय किया है या नहीं। कभी यह सुनने में नहीं आया कि इससे वह परीक्षा व्यवस्था ध्वस्त हो गई या कोई जनहित नष्ट हुआ हो। इसके उलट यह जरुर हुआ कि आपत्ति के बाद तमाम छात्रों ने अपनी मेरिट सही करवा कर लाभ प्राप्त किया।
               यह सच है कि उच्च परीक्षाओं में प्रत्येक छात्र को जॉची गई उत्तर पुस्तिका दिखा पाना संभव नहीं है लेकिन मॉगे जाने पर तो दिखाया ही जा सकता है। बोर्ड परीक्षाओं में 'स्क्रूटनी'यानी पुनर्परीक्षण की व्यवस्था तो है लेकिन इसमें भी छात्र अपनी कॉपी देख नहीं सकता। इसमें किसी अन्य परीक्षक से कॉपी को पुन: जॅचवा दिया जाता है। छात्रों व अभिभावकों द्वारा यह मॉग काफी अरसे से हो रही है कि परीक्षाओं में टॉप करने वाले छात्रों की उत्तर पुस्तिकाऐं सार्वजनिक की जॉय ताकि अन्य छात्र यह जान सकें कि टॉप करने के लिए किस तरह उत्तर दिया जाना चाहिए। इस बेहद निर्दोष सी मॉग को आज तक परीक्षा संस्थाओं द्वारा माना नहीं गया। दुनिया में जो कुछ भी प्राकृतिक या कृत्रिम सर्वश्रेष्ठ होता है,वह सप्रयास सबको देखने के लिए उपलब्ध कराया जाता है। तो फिर सर्वश्रेष्ठ कापियों को छिपाया क्यों जाता है? क्या उनकी सर्वश्रेष्ठता संदिग्ध होती है? क्या यह संदेह इस अवधारणा की पुष्टि नहीं करता कि शिक्षण-प्रशिक्षण संस्थाओं में सर्वश्रेष्ठ बनाने का बाकायदा धंधा चल रहा है?
             माध्यमिक शिक्षा का बोर्ड हो या विष्वविद्यालय की परीक्षाऐं, यह तथ्य सभी जानते हैं कि आज परीक्षक किस तरह कापियॉ जॉचते हैं। परीक्षकों को प्रति कॉपी के हिसाब से जॉचने का पारिश्रमिक दिया जाता है। यानी ज्यादा कॉपी तो ज्यादा पैसा!ऐसे में परीक्षक कॉपी नहीं जॉचते बल्कि कवर पृश्ठ पर अनुमान के हिसाब से नम्बर देकर खानापूरी भर करते हैं। शिकायतें तो यहॉ तक हैं कि विश्वविद्यालयों के दमदार प्रोफेसर्स तो कॉपियाँ अपने घर मॅगवाकर लेते हैं और वहॉ उनके चेले-चपाटे परीक्षक बनकर उनका काम हल्का कर देते हैं। ऐसे में हर छात्र के दिल का धड़कना जायज है और संदेह होने पर अपनी जॉची हुई कॉपी को देखने का अधिकार भी। शुक्र है कि कलकत्ता उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय ने छात्रों की इस तकलीफ को समझा।
              न्यायालय के समक्ष अपना पक्ष रखते हुए उक्त संस्थाओं ने कहा था कि इससे समूची परीक्षा व्यवस्था ही ध्वस्त हो जाएगी। शिवहर्ष किसान पोस्ट ग्रेजुएट कालेज जनपद बस्ती के अंग्रेजी के वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ. रघुवंशमणि इस प्रश्न पर कहते हैं कि प्रत्येक परीक्षा पुस्तिका को जॉचने के बाद उस पर परीक्षक को अपने हस्ताक्षर करने पड़ते हैं। इस प्रकार छात्र द्वारा कॉपी देखे जाने पर परीक्षक की पहचान खुल जाएगी जो तमाम प्रकार की परेशानियॉ खड़ी कर सकती है। लेकिन श्री रघुवंशमणि कहते हैं कि यदि कोई छात्र परीक्षक के बारे में जानना ही चाहे तो वह एलॉटमेन्ट रजिस्टर से भी जान सकता है कि उस विषय की कॉपियॉ किस परीक्षक को दी गई है। श्री मणि इस फैसले का स्वागत करते हैं। पूर्वांचल के सबसे बड़े महाविद्यालय साकेत महाविद्यालय अयोध्या, फैजाबाद के हिन्दी के वरिश्ठ प्राध्यापक डॉ. अनिल सिंह कहते हैं कि जब तमाम परीक्षाओं में कापियॉ दिखाई ही जाती हैं तो यह रोक बेमानी थी और कलकत्ता उच्च न्यायालय तथा सर्वोच्च न्यायालय ने बहुत सराहनीय फैसला छात्रों के हित में किया है। श्री सिंह कहते है कि इससे शिक्षा-परीक्षा में बढ़ रही माफिया प्रवृत्ति पर रोक लगाई जा सकती है। लखनऊ विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व उपाधयक्ष तेज नारायण पांडेय उर्फ पवन पांडेय कहते हैं कि शिक्षा माफियाओं से लड़ने को न्यायालय ने निरीह छात्रों को एक बहुत कारगर औजार दे दिया है।
               देश में सूचना का अधिकार कानून लागू है जो अब न सिर्फ सरकारी विभाग बल्कि तमाम निजी संस्थाओं को भी अपने दायरे में ले रहा है। ऐसे में अब यह कहकर नहीं बचा जा सकता कि यह जनहित के नाम पर नहीं है या इससे कोई तथाकथित व्यवस्था धवस्त हो जाएगी। असल में यह देश के लचर कानूनों से उपजी समस्या थी जो ठीक से विरोध न करने के कारण फल-फूल कर गरीब छात्रों के लिए जानलेवा बन गई थी जबकि पूँजीदार लोग इसी के दम पर सरकारी मलाई काट रहे थे। प्राय: सभी ने इसे न्यायिक पारदर्शिता की दिशा में एक और कदम बताते हुए इसका स्वागत किया है। शिक्षा जगत में अभी बहुत व्याधियॉ हैं लेकिन लगता है कि यह फैसला अब एक प्रवेश मार्ग का काम करेगा। ( हमसमवेत फीचर्स में २२ अगस्त २०११ को प्रकाशित)




Friday, August 12, 2011

भाषण, जो लाल किले से पढ़ा नहीं गया! ---- सुनील अमर



 मेरे प्यारे देशवासियों ......
             आज आजादी को याद करने का दिन है। आजादी की कीमत वही समझ सकता है जो गुलाम हो। वैसे ही, जैसे खाने की कीमत वही समझ सकता है जो भूखा हो। यह अच्छी बात है कि हम आप न तो गुलाम हैं और न ही भूखे। यह हमारे देश के महान नेताओं की मेहनत और त्याग का फल है। हमें आपको यह बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि हमने देश के चैतरफा मौजूद खतरों को नेस्तनाबूद कर दिया है। हमने बिना कुछ किए ऐसी-ऐसी चालें चलीं कि हमारे सभी पड़ोसी दुश्मन एक-एक कर परास्त होते चले गए। यह हमारी उस महान नेता की दूरगामी सोच का परिणाम है जिनका त्याग करने में कोई सानी नहीं। वे त्यागियों की परम्परा से आती भी हैं, तभी तो उनहोंने इस देश के महान त्यागी पुरुष का जातिनाम खुशी-खुशी ग्रहण किया। उनके दुश्मन आरोप लगाते हैं लेकिन मैं उनसे पूछना चाहता हॅू कि इतने बड़े देश में क्या किसी और ने भी उस त्यागी पुरुष का जातिनाम अपनाया? 
मेरे प्यारे बहनों और भाइयों,  
अब मैं कुछ ऐसी महत्त्वपूर्ण बातें आपसे करना चाहूँगा जिन्हें ठीक से समझना आपके लिए बहुत जरुरी है। हमने देश के बाहर की लड़ाईयों को तो सफलतापूर्वक जीत लिया लेकिन हमारे विरोधी लोग हमारी इस कामयाबी से चिढ़कर देश के भीतर ही हमारे शासन के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। वे तमाम तरह के दुष्प्रचार से हमें अस्थिर करना चाहते हैं। मैं कभी-कभी सोचकर हैरान हो जाता हॅूं कि हमारे विरोधी पढ़े-लिखे होकर भी कैसी मूर्खता की बातें करते हैं! आप सभी जानते हैं कि हमारे शासनकाल में देश में इतना ज्यादा अनाज पैदा हो रहा है कि उसे रखने की भी हमारे पास जगह नहीं है। मजबूरी में हमें उसे खुले में रखना पड़ता है। यह हमारे किसानों के सम्पन्न और खुशहाल होने का सबूत है, फिर भी हमारे विरोधी प्रचार करते हैं कि देश में तमाम लोग भूखे हैं! मुझे पता है कि देश में बहुत से लोग भूखे रहते हैं लेकिन वे इस देश की धार्मिक परम्परा और शास्त्रों में वर्णित विधान के तहत ऐसा करते हैं। हमारी धर्मप्राण जनता को मालूम है कि खुद भूखा रहकर दूसरों का पेट भरने से मोक्ष प्राप्त होता है। 
चार-पांच लोग हमारी  सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हैं और कहते हैं कि सरकार के फलां मंत्री ने इतना धन ले लिया और फला ने उतना। मैं विनम्रतापूर्वक उनसे कहना चाहता हॅू कि सरकार धन से ही तो चलती है। क्या दुनिया में कोई ऐसा भी शासन तंत्र कहीं है जो बिना धन के ही चलता हो? मेरी उदारता देखिए कि मैंने अपने ऐसे विरोधियों को भी कई बार चाय और भोजन पर बुलाकर समझाया कि उनकी जो भी निजी तकलीफ और जरुरतें हो वे बतायें हम पूरी करेंगें और वे सब अपना-अपना काम करें लेकिन वे नहीं मानते। उनमें लाखों रुपया रोज कमा सकने वाले वकील हैं जो वकालत छोड़कर शासन को अस्थिर करने का षड़यंत्र रचने में लगे हैं। उनमें वरिष्ठ अधिकारी हैं जो शानदार नौकरी छोड़कर हमें हिलाने का कुप्रयास कर रहे हैं। एक पेन्शनर हैं जिन्हें बुढ़ापे में आराम करना चाहिए था लेकिन वे षडयंत्रकारियों के सरगना बने हुए हैं। आखिर सरकार क्या किसी को इसलिए पेंशन देती है कि वो सरकार को ही गिराने में उस धन का इस्तेमाल करे? आप स्वयं बताइए कि क्या ऐसे अनैतिक लोगों को सत्ता में आने का मौका मिलना चाहिए? भगवान श्री राम हमारे आदर्श हैं। बचपन में मैं भी रामलीला देखता और खेलता था। मुझे कुंभकरण के चरित्र ने बहुत प्रभावित किया! देश के एक ख्यातिलब्ध कसरतवाले ने पिछले दिनों ऐसे ही एक पवित्र रामलीला मैदान को अपवित्र करने की कोशिश करी। आधी रात का वक्त था। हम चाहते तो उन्हें कारागार में आराम से रख सकते थे लेकिन हमारा बड़प्पन देखिए कि हमने उन्हें वायुमार्ग से उनके घर भिजवा दिया। इस प्रकरण में मैं तहेदिल से शुक्रगुजार हॅू अपने सभी विपक्षी दलों का कि वे ऐसे चंद अलोकतांत्रिक लोगों के बहकावे में नहीं आये। कोई भी समझदार संगठन या व्यक्ति अपने रास्ते में कभी गढ्ढा नहीं खोदता।
एक दूसरा आरोप हमारे विरोधी हम पर मंहगाई बढ़ाने का लगाते हैं। मंहगाई, जैसा कि आप जानते हैं कि नज़रों के दोष के सिवा और कुछ नहीं। आप एक लाख आदमी से कहलवा सकते हैं कि मंहगाई से नुकसान हो रहा है और हम दो लाख आदमी से कहलवा सकते हैं कि मंहगाई से बहुत लाभ हो रहा है। हमारे विद्वान दूरदर्शी कृषि मंत्री ने हमेशा मंहगाई बढ़ने से पहले देश को आगाह किया कि फलां जिंस मंहगी हो सकती है और जैसा कि आप सबने देखा है, देख रहे हैं और देखेंगें कि उनकी बात हमेशा सच साबित हुई। आखिर मौसम विभाग आपको चेतावनी ही तो दे सकता है। वह आपके साथ छाता लेकर तो खड़ा नहीं हो सकता! हमें गर्व है कि दुनिया के किसी और देश में ऐसा दूरअंदेशी कृषि मंत्री नहीं है। हमारे विरोधी कभी भी पूरी बात नहीं बताते और आप सबको अंधेरे में रखते हैं। वे कहते हैं कि हमने डीजल और पेट्रोल का दाम बढ़ा दिया है जिससे जनता परेशान है। वे आरोप लगाते हैं कि हमने हवाई जहाज का पेट्रोल बहुत सस्ता कर दिया है। मैं उनसे सवाल करना चाहता हॅू कि आप देश और देशवासियों को आगे बढ़ते नहीं देखना चाहते? क्या देश की साधारण जनता को हवाई जहाज से यात्रा करने का मौका नहीं मिलना चाहिए? हमने इसी नीति के तहत साधारण पेट्रोल का दाम बढ़ाकर हवाई जहाज के पेट्रोल का दाम काफी कम किया ताकि हवाई यात्रा सस्ती हो सके और हमारे गरीब भाई-बहन भी उसमें बैठकर अपने सपनों को पूरा कर सकें। 
हमारे यही विरोधी षडयंत्रपूर्वक प्रचार करते हैं कि देश में गरीबी बढ़ रही है। आप रोज देखते होंगें कि जहां पैसा देकर कोई सामान खरीदना है वहाँ भी इतनी भीड़ रहती है कि आपको लाइन लगानी पड़ती है और हमें  पुलिस। क्या यह गरीबी का लक्षण है? बसों में लटकना पड़ता है, रेलगाड़ियों में छतों पर बैठना पड़ रहा है, अस्पताल भरे हैं और मरीज जमीन पर लेटकर इलाज करा रहे हैं। सरकारी दफ्तरों में इतनी भीड़ रहती है कि आपका काम महीनों क्या सालों तक नहीं हो पाता। हमारी अदालतों में करोड़ों लोग पचासों साल तक मंहगा मुकदमा लड़ते हैं, क्या यह सब गरीबी और भुखमरी के चिह्न हैं? कारों की बिक्री बढ़ रही है, मोटर सायकिलें धुआधार बिक रही हैं, हवाई जहाज से यात्रा करने के लिए भी इंतजार करना पड़ रहा है, प्रायवेट स्कूल, प्रायवेट अस्पताल, प्रायवेट बैंक, प्रायवेट कालोनियां और निजी सुरक्षा व्यस्था का बढ़ना क्या यह सब गरीबी के कारण हो रहा है? हमारे विरोधी परस्पर उल्टी बातें करतें हैं और उन्हें जरा भी शर्म नहीं आती। एक तरफ वे कहते हैं कि देश में विकट गरीबी है, दूसरी तरफ कहते हैं कि देश का खरबों रुपया विदेशी बैंकों में जमा है! यहाँ मैं आपको बताना चाहूँगा कि मैंने विदेशी बैंकों में नौकरी की है और मैं जानता हॅू कि सिर्फ अमीर देश ही विदेशों में खरबों रुपया जमा कर सकता है।
बहुत दिन से मैं आप सबसे यह सारी बातें करना चाह रहा था। मेरे अधिकारियों ने सलाह दी थी कि मैं आकाशवाणी और दूरदर्शन की मार्फत आपसे बात कर लूं लेकिन मैंने आपकी गाढ़ी कमाई से प्राप्त सरकारी धन को बरबाद करने के बजाय आज के इस अवसर का इंतजार किया। मैं बहुत देर से गौर कर रहा हॅू कि आप सब बड़े ताज्जुब से मेरे इस भाषण वाले मचान को देख रहे हैं जो इस लाल किले की प्राचीर के बावजूद मजबूत बल्लियों को बांधकर बनाया गया है। साथियों, अभी बीते दिनों जब से देश के एक सूबे में सिर्फ 34 साल पुराना एक लाल दुर्ग एक महिला के नाजुक हाथों ढ़ह गया तब से दुर्ग और किलों की मजबूती से मेरा भरोसा उठ गया है और यह किला तो वैसे भी सैकड़ों साल पुराना है। मैं एक बार फिर आप सबसे गुजारिश करना चाहूँगा कि आप सब मेरी वफादारी और देशभक्ति पर विश्वास बनाये रखें। यह देखिए, मेरे अधिकारियों ने मेरा यह भाषण अंग्रेजी लिपि में लिख रखा है लेकिन मैंने इसे राष्ट्रभाषा में ही पढ़ा! अब एक बार मेरे साथ  जोर से बोलिए- जय सोनिया! जय इंडिया!! थैंक्यू वेरी मच। वुई विल मीट अगेन एण्ड अगेन। 00 


राजनीतिक दॉव-पेंच पर बलि चढ़ती जनता ---- सुनील अमर



राजनीतिक दलों की आपसी तकरार में नुकसान जनता का ही होता है, यह एक सर्वविदित तथ्य है, लेकिन जब इस तकरार के दायरे में सरकारें आ जाती हैं तो यह नुकसान कहीं ज्यादा व्यापक और घातक हो जाता है। केन्द्र की कॉग्रेसनीत संप्रग सरकार और उत्तर प्रदेश की सत्तारुढ़ बसपा सरकार की आपसी खींचतान में बीते चार वर्षों से यही हो रहा है। दर्जनों ऐसी योजनाऐं हैं जिनकी शुरुआत या सफल क्रियान्वयन अगर समय से हो जाता तो इस महाप्रदेश की जनता को कई प्रकार की राहतें मिल सकती थीं और विकास की अटकी हुई गाड़ी जरा आगे बढ़ सकती थी, लेकिन इसके उलट योजनाओं के लिए धन की पर्याप्त व्यवस्था होने के बावजूद,वोट की राजनीति और आपराधिक कर्तव्यहीनता ने कई महत्त्वपूर्ण योजनाओं की एक प्रकार से भ्रूण हत्या ही कर दी है। अफसोस इस बात का है कि तमाम निगरानी संस्थाओं के होने के बावजूद इस घातक प्रवृत्ति पर अंकुश लगते दिख नहीं रहा है।
               उत्तर प्रदेश में इन दिनों जो ताजा राजनीतिक भूचाल आया हुआ है वह है केन्द्र की राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन योजना में हो रही व्यापक लूट-खसोट और इसके कारण हुई स्वास्थ्य विभाग के तीन उच्चाधिकारियों की हत्या। सभी जानते हैं कि प्रदेश में स्वास्थ्य सम्बन्धी सेवाऐं कितनी खस्ताहाल हैं और जरा से भी इलाज के लिए लोग निजी डाक्टरों और अस्पतालों के चंगुल में फॅंसने को विवश हैं। बावजूद इसके वर्श 2010-2011 में इस योजना के तहत केन्द्र से मिले 3100 करोड़ रुपये में से 521 करोड़ रुपये खर्च ही नहीं किये गये! इसका जो नुकसान प्रदेश की गरीब जनता को हुआ सो तो हुआ ही, वित्तीय परम्पराओं के अनुसार इस यानी चालू वर्ष के लिए आवंटित कुल 3309 करोड़ रुपयों में से 694 करोड़ रुपयों की कटौती केन्द्र ने कर दी क्योंकि राज्य सरकार दिए गए धन को खर्च ही नहीं कर पा रही थी!
               यह तथ्य ध्यान में रहे कि उ.प्र. में जीवन प्रत्याषा की दर देश के सबसे कम दर वाले राज्यों में गिनी जाती है। यहॉ मातृ मृत्यु दर 440 व शिशु मृत्यु दर 67 है। योजना थी कि प्रदेश के प्रत्येक जिला मुख्यालय या फिर पॉच लाख की आबादी पर एक ऐसा आधुनिक अस्पताल बनाया जाय जिसमें 24 घंटे ऑपरेशन तथा जटिल से जटिल प्रसव स्थितियों को संभालने की व्यवस्था हो, लेकिन यह अभी हवा में ही है। देश में प्रति एक हजार व्यक्ति पर एक डाक्टर का औसत है तो उ.प्र. में 5000 पर एक! अस्पताल में डाक्टरों के 4000 पद रिक्त हैं और बाल रोग विशेषज्ञों के 200 पद। राजकीय राजमार्गों पर होने वाली दुर्घटनाओं में तत्काल उचित चिकित्सा हेतु प्रदेश के छह प्रमुख शहरों आगरा, कानपुर, गोरखपुर, इलाहाबाद, मेरठ और झॉसी के मेडिकल कालेजों में अत्याधुनिक ट्रामा सेन्टर बनाये जाने थे लेकिन धन होने के बावजूद यह कार्य अभी फाइलों से जमीन पर उतर नहीं सका है।
               विश्व में अपने ढ़ॅंग की अनोखी योजना मनरेगा की जब शुरुआत हुई तो ऐसा लग रहा था कि इससे समाज के उस तबके को काफी राहत मिल जाएगी जो रोज कुऑ खोदकर पानी पीने को अभिशप्त है। वर्ष में 100दिन का निश्चित रोजगार या उसके न मिलने पर भत्ता, भुखमरी की आशंका के विरुध्द एक ठोस आश्वासन था, लेकिन वोट की राजनीति ने इस अतिमहत्त्वाकांक्षी योजना को भी चौपट करके रख दिया। यह जानकर आश्चर्य होगा कि अरबों रुपया सरकार के खाते में पड़ा होने के बावजूद जरुरतमंद लोगों को न तो काम दिया जा रहा है और न ही नियमानुसार भत्ता। पिछले वित्तीय वर्ष में इस योजना के तहत कुल 8000करोड़ रुपया खर्च किये जाने का लक्ष्य रखा गया था लेकिन नौ माह बीत जाने के बावजूद इसमें से सिर्फ 3000 करोड़ रुपये ही खर्च हो सके थे ! यह हाल तब है जब केन्द्र सरकार इस योजना को बेहतर ढ़ॅंग से चलाने के लिए इसके बजट का छह प्रतिशत धन प्रशासनिक व्यय के रुप में देती है।
               योजना के क्रियान्वयन में किस तरह की आपराधिक लापरवाही बरती जा रही है, इसका अनुमान महज इस एक तथ्य से लगाया जा सकता है कि गत वित्तीय वर्ष में फरवरी माह तक प्रदेश के कुल 23,19,319 परिवारों को 100 दिन का रोजगार देने का लक्ष्य रखा गया था लेकिन दिया गया मात्र 3,85,407परिवारों को ही!प्रदेश के महोबा व औरैया जिले बुंदेलखण्ड प्रभाग में आते हैं और वहॉ व्याप्त सूखे की विकट स्थिति और इसके फलस्वरुप किसानों द्वारा की जा रही आत्महत्याओं से सारा देश अवगत है। इसके बावजूद सरकारी ऑकड़े बताते हैं किइन दोनों जनपदो में महज तीन प्रतिशत लोगों को ही मनरेगा में काम मिल सका! प्रदेश के जनपद सुल्तानपुर, बाराबंकी, पीलीभीत, सोनभद्र, मुरादाबाद, श्रावस्ती और सहारनपुर ऐसे जिले हैं जहॉ तीन से पॉच प्रतिशत परिवार ही मनरेगा में काम पा सके। सुल्तानपुर का रिकॉर्ड तो हैरतअंगेज है जहॉ मनरेगा में काम पाने के लिए 40503परिवार सूची में थे लेकिन काम दिया गया महज 1385 परिवारों को! यह किसी योजना का क्रियान्वयन है या मजाक? पैसा वापस चला जा रहा है लेकिन जरुरतमंदों को काम नहीं दिया जा रहा है!कमाल यह है कि इस गंभीर लापरवाही के लिए किसी अधिकारी को जिम्मेदार भी नहीं ठहराया जा रहा है।
               शहरी गरीबों के लिए केन्द्र सरकार ने दिसम्बर 2008 में एक महत्त्वाकांक्षी योजना लागू की थी - झुग्गी झोपड़ी के स्थान पर पक्का आवास देने की। इसमें सस्ती ब्याज दर, अनुदान व आसान किश्तों की व्यवस्था है। इसके लिए केन्द्र सरकार ने प्रथम चरण में 1100 करोड रुपयों की व्यवस्था की। यह जानकर आश्चर्य होगा कि तीन वर्ष बीत जाने के बावजूद राज्यों द्वारा इसमें से महज चार करोड़ बत्तीस लाख रुपये ही इस्तेमाल किए गए। लगभग 20 राज्यों ने तो इस योजना को शुरु ही नहीं किया और उत्तर प्रदेश सरीखे राज्य ने तो सिर्फ एक व्यक्ति को इसके लिए अभी तक चुना है! काँग्रेस शासित राज्यों ने भी इस योजना को नहीं शुरु किया जबकि धन बैंकों में पड़ा है।
               सूखे से त्रस्त बुंदेलखंड देश का दूसरा विदर्भ बनता जा रहा है। इसके उ.प्र. में पड़ने वाले आठ जिलों में वर्ष 2009 से लेकर अब तक के सिर्फ दो वर्षों में ही 1670 किसान कर्ज और भुखमरी से आत्महत्या कर चुके हैं और अखबारों में छपी इन खबरों पर गत माह स्वत:संज्ञान लेते इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आगामी आदेश तक हर प्रकार की सरकारी वसूली पर रोक लगाकर सरकार से ब्यौरा तलब किया है। इस हालत में भी वहॉ के लिए दिए गये अतिरिक्त केन्द्रीय सहायता के 800 करोड़ रुपयों में से बीते 31 मार्च तक सिर्फ 73 करोड़ रुपये ही खर्च करने का उपयोग प्रमाण पत्र राज्य सरकार दे पाई है! पैसा पड़ा है और लोग इसलिए मर रहे हैं कि सरकार काम के बजाय ऐश करने में लगी है।
               प्राथमिक शिक्षा का भी यही हाल है। शिक्षा का अधिकार कानून केन्द्र द्वारा लागू किए जाने के बावजूद प्रदेश सरकार ने उसे तब तक अधिसूचित नहीं किया जब तक कि केन्द्र ने इस मद में धन देना बंद नहीं कर दिया। अभी गत पखवारे उ.प्र.सरकार ने इसे अधिसूचित किया। इस प्रकार योजना और धन दोनों होने के बावजूद प्रदेश सरकार द्वारा महज इसलिए लोगों को उसका लाभ न लेने देना कि इससे तो किसी राजनीतिक दल का प्रचार होगा और उसके मतदाता बढ़ जाएगें, आपराधिक कृत्य है और उसके द्वारा संविधान के प्रति ली गई शपथ का घोर उल्लंघन भी। ( हम समवेत फीचर्स में 08 अगस्त 2011को प्रकाशित )