Wednesday, July 27, 2011

पूर्वांचल में भी हैं किसानों की समस्याऐं --- सुनील अमर




एक लम्बे अरसे से सुस्त पड़ी उत्तर प्रदेश की काँग्रेसी राजनीति को पिछले कुछ वर्षों से राहुल गॉधी ने अपने नये अंदाज में आंदोलित करना शुरु किया है। इस क्रम में सबसे पहले उन्होंने दलितों के मुहल्लों में नहाना-खाना-सोना शुरु कर कॉग्रेस में उनकी विश्वास बहाली का प्रयास किया। इसी दौरान राहुल देश-प्रदेश के युवाओं से स्कूल-कॉलेजों में जाकर मिलते रहे। इधर भूमि अधिग्रहण की ज्यादतियों पर बेहद आन्दोलित पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों के बीच बार-बार जाकर उन्होंने मामले को राष्ट्रीय स्तर पर इस कदर चर्चित किया कि जहाँ प्रदेश सरकार को अपनी फेस सेविंग के लिए इस समस्या को लेकर कई फैसले करने पड़े, वहीं उन्हीं की पार्टी की अगुवाई में चल रही केन्द्र सरकार को भी किसान हितों को लेकर कई महत्त्वपूर्ण घोषणाऐं करनी पड़ीं और आगामी अगस्त माह से शुरु हो रहे संसद के मानसून सत्र में उन्हें पेश करने का निर्णय लेना पड़ा है। अब राहुल गॉधी ने पूर्वांचल की तरफ रुख किया है। कॉग्रेस की तरफ से बताया गया है कि वाराणसी में युवक कॉग्रेस की संगठनिक बैठक होगी और इसमें प्रयास होगा कि पूर्वांचल के ज्यादा से ज्यादा युवाओं को संगठन से जोड़ा जा सके। उत्तर प्रदेश में वर्ष 2012में विधानसभा के चुनाव होने हैं।
               उत्तर प्रदेश का अगर भौगोलिक और आर्थिक विश्लेशण किया जाय तो यह साफ पता चलता है कि प्रदेश का पूर्वी हिस्सा जिसमें करीब 32 जिले आते हैं, भौगोलिक रुप से पर्याप्त समृध्द होने के बावजूद राज्यकृत संसाधनों और आर्थिक समृध्दि में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुकाबले कहीं ठहरता ही नहीं। यह इस तथ्य के बावजूद है कि इसी पूर्वी उत्तर प्रदेश से ही अधिकांश मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री प्रदेश और देश को अब तक मिलते रहे हैं। श्रीमती सोनिया और राहुल गॉधी स्वयं इसी पूर्वांचल क्षेत्र का प्रतिनिधित्व संसद में करते हैं। वाराणसी एक अति प्राचीन और महत्त्वपूर्ण धार्मिक नगरी होने के साथ-साथ पूर्वांचल की संस्कृति का उत्कृष्ट प्रतीक है। समग्र पूर्वांचल क्षेत्र को कोई भी संदेश देने के लिए वाराणसी से अच्छी कोई जगह नहीं। अभी कुछ माह पूर्व भी कॉग्रेस की एक संगठनात्मक बैठक यहाँ हो चुकी है।
               पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों की जिन समस्याओं को लेकर राहुल गॉधी ने भ्रमण और पदयात्रा की वे भूमि अधिग्रहण से सम्बंधित थीं लेकिन उससे कहीं त्रासद और मारक परिस्थितियॉ किसानों के साथ पूर्वांचल में मौजूद हैं। यहॉ यह कहना प्रासंगिक होगा कि यदि इस क्षेत्र की किसान-समस्याओं को श्री राहुल गॉधी द्वारा उठाया जाय तो उसका न सिर्फ तात्कालिक बल्कि दीर्घकालिक लाभ कॉग्रेस को मिल सकता है। पूर्वांचल के तमाम हिस्से जहॉ बरसात के दिनों में बाढ़ से घिर कर जन-धान की हानि का शिकार होते हैं वहीं अन्य दिनों में बिजली की हाहाकारी कटौती, सरकारी नलकूपों की स्थायी खराबी,नहरों के सूखी रहने तथा खाद-बीज की अनुपलब्धता और इसके चलते कालाबाजारी तथा तमाम सरकारी खरीद योजनाओं के बावजूद दलालों व बिचौलियों के हाथों लुटने की मजबूरी ही यहाँ के किसानों की नियति बन चुकी है। पूर्वांचल में सबसे खराब स्थिति तो शीतगृहों की है।
               आबादी और कृषि के क्षेत्रफल के लिहाज से देखें तो यहॉ न के बराबर शीतगृह हैं। यह किसानों के शोषण का बहुत बड़ा कारण है। तुलनात्मक तौर पर देखें तो पूर्वांचल की बदहाली भी बुंदेलखण्ड से कम नहीं है।
               राहुल गॉधी युवाओं को अधिकाधिक संख्या में कॉग्रेस से जोड़ना चाहते हैं। यह सच है कि वोट की राजनीति में युवा शक्ति बहुत कारगर भूमिका निभाती है और जहॉ परिवर्तन चाहिए हो वहाँ तो युवाओं बगैर काम चल ही नहीं सकता। राहुल गाँधी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान राजनीति की है। वहॉ आमतौर पर किसान सम्पन्न हैं क्योंकि उनके पास न सिर्फ बड़ी जोत है बल्कि खेती के लिए आवश्यक संसाधन के तौर पर वहाँ पर्याप्त नहरें हैं, विद्युत आपूर्ति बेहतर है, तथा गोदामों, शीतगृहों व अनाज मंडियों की व्यवस्था बेहतर है। ऐसे में वहाँ किसान का बेटा भी अपनी सम्पन्नता के बूते राजनीति में दखल बनाए रखता है। पूर्वांचल में ऐसा नहीं है। यहॉ के अधिसंख्य युवा रोजगार की खोज में पश्चिमी उत्तर प्रदेश सहित पंजाब, हरियाणा, मुम्बई या फिर गुजरात की तरफ निकल जाते हैं। जो यहॉ रह भी जाते हैं वो रोजगार के दुष्चक्र में ऐसे फॅसते हैं कि उनके लिए किसी भी राजनीतिक दल से जुड़ना संभव नहीं होता। ऐसे में समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग राजनीति में अपनी हिस्सेदारी से बचा रह जाता है और उसकी आवाज अनसुनी रह जाती है। श्री राहुल गॉधी पूर्वांचल के अपने अभियान में अगर समाज के इस वंचित वर्ग को भी सामने लाने की कोई योजना बना सकें तो यह सिर्फ राजनीतिक ही नहीं बल्कि हर लिहाज से एक बड़ा कदम साबित होगा।
               पूर्वांचल का अधिकांश हिस्सा इन्हीं दिनों बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित होता है। व्यापक जन-धन की हानि होती है। अन्य तमाम दिक्कतों के साथ-साथ किसानों की महीनों की मेहनत पर पानी फिर जाता है। बाढ़ से उनके खेत खराब हो जाते हैं और वे जलभराव के कारण बुवाई नहीं कर पाते या बोया हुआ भी नष्ट हो जाता है। इन्हीं दिनों में पूर्वांचल का पूरा क्षेत्र जापानी इंसेलायटिस या मस्तिष्क ज्वर नामक जानलेवा बीमारी से प्रभावित रहता है और प्रतिवर्ष हजारों लोग इसके शिकार होकर काल कवलित हो जाते हैं। इनमें बड़ी तादाद बच्चों की होती है। यह बीमारी पूर्वांचल के लिए अभिशाप सरीखी है। प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाऐं कितनी बदहाल और माफियाओं के चंगुल में हैं,यह अभी ताबड़तोड़ तीन सी.एम.ओ. की हत्या से स्पष्ट है, जिनमें एक डिप्टी सी.एम.ओ. थे जिन्हें जेल के भीतर कथित तौर पर मार डाला गया है। यह ध्यान देने योग्य तथ्य है कि यह हत्याऐं उन अधिकारियों की हुई हैं जो केन्द्र सरकार की एक महत्त्वाकांक्षी स्वास्थ्य योजना राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत तैनात थे। इस योजना के तहत प्रत्येक जिला अस्पताल को दवा आदि की खरीद हेतु वर्ष में 30 करोड़ रुपये दिए जाते हैं। पूर्वांचल के मस्तिष्क ज्वर प्रभावित जिलों को इस बीमारी के उपचार हेतु खास तौर पर अतिरिक्त बजट व दवाऐं दी जाती हैं। इतना भारी-भरकम बजट फिर भी नतीजा शून्य ही रहता है क्योंकि क्रियान्वयन और निगरानी तंत्र में भारी भ्रष्टाचार व्याप्त है। पूर्वांचल में इस मौसम का आगमन लोगों में भय पैदा करता है। यह निश्चित है कि अगर राहुल गॉधी सरीखे नेता पूर्वांचल की इन समस्याओं में जरा भी रुचि लेना शुरु कर दें तो यहॉ के हालात काफी बदल सकते हैं,जैसा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश कीं किसान समस्याओं के संदर्भ में अभी देखा गया।
               प्रदेश की राजनीति में तीन प्रमुख वर्गों - दलित, छात्र/युवा तथा किसान - की तरफ कॉग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव राहुल गॉधी ने ध्यान दिया है। इन तीनों वर्गों को अगर  राजनीति की मुख्यधारा से जोड़ा जा सके तो इसके राजनीतिक फलितार्थ तो होंगें ही,सामाजिक-आर्थिक विकास को भी गति दी जा सकती है। कहने को तो सभी राजनीतिक दलों ने इन तीनों वर्गों से सम्बन्धित अपने फ्रंटल संगठन बना रखे हैं लेकिन वह महज खानापूरी ही है। बसपा के बहुजन से सर्वजन की तरफ के प्रयाण को दलित पचा नहीं पा रहे है,और प्रदे के किसानों ने बीते तीन दशक में किसान नेताओं और धरती पुत्रों के कई रुपों को नजदीक से देखा जो अंतत:राजनीतिक भयादोहन कर सरकार में शामिल होने और कुनबापरस्ती बढ़ाने को ही किसान सेवा समझते रहे हैं। पूर्वाचल राज्य के गठन की मॉग तो एक लम्बी प्रक्रिया है लेकिन कोई भी राजनीतिक दल अगर पूर्वाचल के किसानों की गंभीरता से सुध ले ले तो उसकी जड़ें वहाँ मजबूत हो सकती हैं। इस समस्या को किसी राष्ट्रीय दल तथा नयी सोच के नेतृत्व से ही हल करने की उम्मीद की जा सकती है। क्षेत्रीय दल या राज्य सरकारें भी इस दिशा में कारगर काम नहीं कर पाऐंगीं। ( हम समवेत फीचर्स में २५ जुलाई २०११ को प्रकाशित )

No comments:

Post a Comment