Thursday, July 21, 2011

एक जुनून इस ‘‘सायकिल टीचर’’ आदित्य का ! -- सुनील अमर


कहावत है कि वह जुनून क्या जो सिर चढ़कर न बोले! ऐसा ही एक जूनून सिर पर सवार है लखनऊ के आदित्य कुमार के। आदित्य लोगों को अंग्रेजी में निपुण करना चाहते हैं, वह भी फ्री में। वे चाहते हैं कि आज के छात्रों व युवाओं को कम से कम इतनी अंग्रेजी जरुर आये कि वे अपनी रोजमर्रा की आवश्यकताओं को बेहिचक पूरी कर सकें। आदित्य साधनहीन हैं लेकिन यह साधनहीनता उनके उत्साह को कम नहीं कर सकी है। अपनी आजीविका के लिए वे ट्यूशन पढ़ाते हैं लेकिन समाज निर्माण का जज़्बा ऐसा है कि बड़े-बड़े साधन सम्पन्नों को उनके सामने शर्म करनी चाहिए। एक पुरानी सी बाइसिकिल पर अपना साजो-सामान बांधकर आदित्य सड़क-सड़क, गली-गली और झुग्गी-झोपडि़यों में घूम-टहल कर जरुरतमंदों को अंग्रेजी भाषा का निःशुल्क प्रशिक्षण देते हैं। ऐसा वे पिछले पांच वर्षों से नियमित रूप से कर रहे हैं। उनसे अंग्रेजी सीखने वालों में गरीब घरों के छात्र, फेरी लगाने वाले दुकानदार, फुटपाथ किनारे बैठकर रोजी कमाने वाले मजलूम से लेकर पुलिसवाले तक शामिल हैं।
          अपने जुनून के बारे में आदित्य बताते हैं कि वे मूलरुप से जनपद फर्रुखाबाद के रहने वाले हैं और रोजगार की तलाश में लगभग 15 साल पहले लखनऊ आ गये थे। रोजगार के तौर पर उन्हें यहां ट्यूशन पढ़ाना पड़ा। आदित्य बताते हैं कि वे एक दलित परिवार से हैं इसलिए आज के समाज में जितनी भी सामाजिक विसंगतियां दलितों को लेकर हैं, आदित्य को भी वह सब झेलना पड़ा है और आज भी झेल रहे हैं। वे कहते हैं कि सामाजिक प्रताड़ना ने ही मुझे प्रेरित किया कि गरीब लोगों को अगर ठीक से शिक्षा मिल जाय तो गरीबी दूर करने की अपनी लड़ाई को वे बेहतर ढ़ॅग से लड़ सकते हैं। उनका प्रयास इसी दिशा में है।
आदित्य ने अपनी साइकिल में एक छोटा सा पी.ए.एस. यानी पब्लिक एड्रेस सिस्टम लगा रखा है और बैनर भी। वे लोगों को इसी लाउडस्पीकर से आकर्षित कर अपनी बात बताते हैं और अगर अंग्रेजी सीखने वाले ज्यादा लोग हो जाते हैं या सड़क पर शोरगुल ज्यादा होता है तो इसी से लोगों को पढ़ाते भी हैं। उनके इस अभिनव समाज सेवा के कारण अब लोग उन्हें साइकिल टीचर, गरीबों का शिक्षक और ऑन रोड अंग्रेजी शिक्षक कहने लगे हैं। वे बताते हैं कि उन्होंने इस तरह के काम में आ रही दिक्कतों और अपने अनुभव के आधार पर कई तरह का पाठ्यक्रम भी बना रखा है और जिस तरह के प्रशिक्षु होते हैं उन्हें उसी मुताबिक शिक्षा देते हैं। आदित्य बताते हैं कि वे एक वीडियो कैमरा भी रखते हैं और उससे तमाम जरुरी चीजों को रिकार्ड कर उसका पढ़ाई में इस्तेमाल करते हैं।
‘‘काम तो बहुत कठिन है?’’ पूछने पर आदित्य कहते हैं कि लगन हो तो कठिन काम भी आसान लगने लगता है, और फिर यह तो समाजसेवा है और खास बात यह है कि इससे उन्हें बहुत सुकून मिलता है। ‘‘सड़क किनारे ऐसा भीड़ वाला काम करने में काफी अड़चन आती होगी?’’ इसके जवाब में आदित्य कहते हैं कि कभी-कभी होती है लेकिन अब उन्हें इस बात का तजुर्बा हो गया है कि उन्हें अपनी क्लास कहां लगानी चाहिए। वे बताते हैं कि अब तो उन्हें काफी लोग पहचानने लगे हैं और देखते ही उनके पास इकट्ठा हो जाते हैं।०० ( हस्तक्षेप डाट कॉम  व चौराहा डाट कॉम पर २१ जुलाई को प्रकाशित )


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एक जुनून इस ‘‘सायकिल टीचर’’ आदित्य का !



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