Thursday, December 23, 2010

''नया मिजाज़, नया रंग ,नया तेवर है...... '' --- सुनील अमर

WikiLeaks के खुलासे के बाद अब यह पूरी तरह साफ हो गया है, कि आने वाले दिनों में न सिर्फ़ पत्रकारिता की दशा और दिशा में आमूल-चूल तब्दीलियाँ आने वाली हैं,बल्कि यह दुनिया के तमाम शासकों को भी यह सोचने को मजबूर करेगा कि जो जनता उन्हें अपने ऊपर हुकूमत करने के लिए खुद ही चुनती है, उससे वे कितना छल-कपट कर सकते हैं! इसके अलावा जनता के धन और जनता की सरकार से ही ताकत प्राप्त करके अपने को बड़ा मीडिया घराना और चौथा स्तम्भ मानने वाले कुछ नाखुदाओं को भी '' cut to size '' कर सकती है. यह सब तो होगा ही, सबसे बड़ा काम जो हो सकता है, वह है- व्यवस्था के प्रति विद्रोह रखने वालों को भी एक बड़ा भोंपू उपलब्ध कराना ! भोंपू मैंने लिख दिया है, असहमति रखने वाले इसे बिगुल भी कह सकते हैं.
अब एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह उठता है कि इससे यानी विकिलिकियाई से लाभ किसका होगा? जनता जनार्दन का या फिर उनका, जिनका कि किसी प्रकार से सूचना-स्रोतों पर अधिकार रहेगा ! अभी तक जो कुछ सामने आया है, वह चूँकि पहली बार है, इसलिए हम बहुत आह्लादित से हैं और यह जानना अभी शेष है कि जो दिखाया गया है वह, शो-रूम है कि गोदाम ! अभी तो हम यही मानकर चल रहे हैं कि जुलियन असान्जे ने, जो कुछ भी पाया है वो सब खोल कर रख दिया है! और यह सही भी हो सकता है, अगर उनकी प्रतिबद्धता कोई वैचारिक न होकर सिर्फ़ रहस्योद्घाटन की ही हो ! वैचारिक प्रतिबद्धता होने पर तो सिर्फ़ वही और उतना ही बताया जाता है, जिससे कि अपने विचारों का प्रचार-प्रसार हो. यही कारण है कि वैचारिक प्रतिबद्धता वालों की बातों पर तुरंत या आँख मूंद कर भरोसा नहीं किया जाता!
दूसरों को आईना दिखाने वाला मीडिया इन दिनों खुद आईने के सामने है. अपने को चाँद समझने के मुग़ालते में रहने वाले को अब पता चल रहा है कि उसके ख़ूबसूरत कहे जाने वाले चेहरे पर भी कई बदसूरत दाग और धब्बे हैं! अपने को मीडिया का बड़ा ख़ुदाई फ़ौजदार मानने वाले, इन दाग-धब्बों को क्रमशः छिपाने, मिटाने या चमकाने में लगे हुए हैं! एकाध फ़ौजदार तो इस आधार पर इन दाग-धब्बों को माफ़ कर देने की वक़ालत कर रहे हैं कि अतीत में मीडिया ने बड़े-बड़े घोटालों-भ्रष्टाचारों को उजागर किया है, इसलिए उसकी इस पहली(!) गलती को माफ़ कर दिया जाना चाहिए ! कमाल है! भाई, यही सहूलियत आप और अपराधियों के बारे में क्यों नहीं चाहते ? आखिर वे भी तो अदालतों में कसम खाते हैं कि दुबारा अपराध नहीं करेंगें! या आपने बिल्कुल तय ही कर लिया है कि मीडिया वाले Super -Duper चीज़ हैं! अब तो आप रहम करिए देश की जनता पर और ये फ़ैसला उसे ही करने दीजिये प्लीज़.
WikiLeaks का दिखाया रास्ता बहुत सस्ता, सुलभ, आसान और बेहद असरदार है.लेकिन यह ऐसा ही बना रहने पायेगा, इसमें संदेह है, क्योंकि यह सारी दुनिया के स्थापित तंत्रों के खिलाफ है.और दुनिया भर के शासन-तंत्र और बड़े मीडिया समूह इसका गला घोटने का मंसूबा सरे-आम पाले हुए हैं.फिर भी इस विकिलिकियाई से अगर हमें काफ़ी उम्मीदें हैं तो महज़ इस कारण कि इसका उत्स हम-आप ही हैं.हम-आप अगर चाहेंगें तो यह इस WikiLeaks नहीं तो दूसरे WikiLeaks , तीसरे
WikiLeaks या फिर चौथे WikiLeaks के रूप में सामने आता ही रहेगा ! जाहिर है कि यह '' हल्दी लगे न फिटकरी और रंग चोखा'' टाइप का मामला है! 00

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