( सुनील अमर )
सच है कि किसी के न रहने से दुनिया का कारोबार रुक नही जाता. प्रेम और अत्याचार के चक्र अपनी गति से चलते रहते हैं लेकिन जाने वाले के पीछे जो रह जाते हैं उनकी तकलीफ '' समाज'' नाम की हमारी व्यवस्था कई गुणा बढ़ा देती है. भंवरी देवी नही रही. सीबीआई कह रही है कि उनका क़त्ल हो गया. उसके रहने पर जो कुछ सामान्य था, नही रहने पर उसे चरित्रहीनता ( पता नही कि इसका मानक क्या है !) के अंतहीन आख्यान में बदल दिया गया है ! आप जानिए कि उसके १८ साल के बेटे और १५ साल कि बेटी ने तानों और अपमान के भय से घर से बाहर निकलना बंद कर दिया है और सबसे छोटी ७ साल की बेटी के पितृत्व-जांच की मांग उसका वह पति कर रहा है जिसने कथित तौर पर उसके कत्ल की व्यवस्था की थी ! जनसत्ता दिल्ली के पेज ०८ पर आज अपूर्वा की रपट -
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