'......ये आता है जी में, तुम्हें भूल जाऊं ,
तुम्हारी तरह कोई दुनिया बसाऊँ,
तुम्हारी तरह ही हँसूं, खिलखिलाऊँ,
मैं खुश हूँ,बहुत खुश हूँ,सबको दिखाऊँ.
मगर दिल है अब भी तुम्हें चाहता है.....
तुम्हें चाहता है ,
तुम्हें चाहता है ..........''( नज्म - 'कहाँ पहले जैसे ज़माने रहे अब ..' =द्वारा - सुनील अमर )
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