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नया मोर्चा
समय और समाज का साक्षी
Friday, November 16, 2012
फ़ैज़ाबाद को जलाने की साजिश किसकी ? - सुनील अमर
फै
ज़ाबाद देशद्रोहियों की साजिश का गंभीर शिकार होते-होते बचा। जो शहर वर्ष 1989 से लेकर वर्ष 1992 तक देश व समाज तोड़ने वालों के झॉसे में नहीं आया उसे एक बार फिर जलाने की कोशिश की गयी लेकिन यहाँ की जनता निश्चित ही बधाई की पात्र है जिसने हमेशा की तरह इस बार भी ध
ै
र्य का परिचय देकर असमाजिक तत्त्वों को मुॅहतोड़ जवाब दिया। बीते माह 25 अक्तूबर को दुर्गा प्रतिमाओं के विसर्जन के दौरान पूर्व नियोजित ढॅग़ से उपद्रव कर एक समुदाय की दुकानें जलायी गयीं। इनकी चपेट में आकर कहीं-कहीं दूसरे समुदाय की भी दुकानें जलीं। दंगाई कितने पूर्व नियोजित ढ़ॅग से काम कर रहे थे, इसका पता इसी से चलता है कि जल रही दुकानों की आग बुझाने आ रहे सरकारी दमकल को रास्ते में कथित भीड़ ने रोक दिया। फलस्वरुप विपरीत दिशा में 55किमी दूर टांडा स्थित नेशनल थर्मल पॉवर कारपोरेशन से दमकलों को मॅगाया गया। इस दौरान यहॉ की स्थानीय जनता ने कितने ध
ै
र्य का परिचय दिया, इसका पता इसी से लगाया जा सकता है कि लगभग एक पखवारे तक र्कफयू लगा होने तथा बार-बार उपद्रव भड़काने की कोशिशों के बाद भी यहॉ जनहानि नहीं होने पायी है। शहर से दूर की एक बाजार में दो मौतें हुई बतायी जा रही हैं। घटना के एक पखवारे बाद अब शासन-प्रशासन की नाकामियॉ खुलकर सामने आ रही हैं।
ऐतिहासिक व जुड़वा शहर अयोध्या और फैजाबाद अमन के शहर हैं। हिन्दू-मुसलमान की अच्छी खासी तादाद होने के साथ-साथ ही यहाँ के लोगों का साम्प्रदायिक सद्भाव भी गज़ब का है। अनुमान लगाइए कि जिस अयोध्या को लेकर देश-दुनिया में बार-बार उत्तेजना देखी गयी वही अयोधया इन दिनों फैजाबाद में हो रहे उत्पात में भी न सिर्फ शांत बल्कि निर्लिप्त सी रही और वहॉ पूजा-नमाज के रोजमर्रा कामों के अलावा दुर्गापूजा,दशहरा व बकरीद के सारे आयोजन हमेशा की तरह दोनों धर्मो के लोगों ने मिलकर मनाये। साफ है कि फैजाबाद को जलाने की साजिश कुछ ऐसे लोगों की थी जिन्हें इस तहस-नहस से किसी न किसी प्रकार का लाभ होता दिख रहा था। हैरानी तो प्रशासनिक निकम्मेपन पर है कि वो कैसे ऑख मॅूदकर व हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा! फैजाबाद नगर के एक बाहरी मोहल्ले देवकाली स्थित एक मंदिर की प्रतिमा लगभग डेढ़ माह पहले चोरी चली गयी। प्रतिमा आस्था व प्राचीनता के कारण भले कीमती रही हो लेकिन धातु के तौर पर वह कोई बहुत कीमती नहीं थी। उसके चोरी जाने की खबर से स्थानीय श्रध्दालुओं में क्रोध व उत्तेजना की लहर दौड़ गई। पुलिस प्रशासन हरकत में तो तुरन्त आया लेकिन इस मामले में इतनी ज्यादा राजनीतिक दखलन्दाजी थी कि वह मनचाहे लोगों पर हाथ नहीं डाल पाया। मामला लम्बा खिंचा तो धार्मिक आस्था का दोहन कर अपना उल्लू सीधा करने वाले भी सक्रिय हो गये। प्रशासन के विरुध्द कई बार प्रदर्शन हुए। शहर के हृदय स्थल चौक घंटाघर पर स्थानीय मुसलमानों ने भी एक दिवसीय धरना देकर मूर्ति बरामदगी की मॉग की। ध्यान देने की बात यह है कि अयोध्या में मंदिरों से मूर्ति चोरी होने की घटनाऐं प्राय: ही होती रहती हैं क्योंकि तमाम मंदिरों में अष्टधातु आदि की बेशकीमती मूर्तियॉ स्थापित हैं व पीतल आदि धातुओं के भारी-भरकम कलश व घंटे लगे हुए हैं। अक्सर ही ऐसी चोरियों में उन मंदिरों के रखवालों की संलिप्तता उजागर होती रहती है। कुछ वर्ष पहले जनपद की एक बाजार में स्थित मंदिर से अष्टधातु की एक देव प्रतिमा चोरी गयी थी जिसकी कीमत तीन करोड़ से भी अधिक ऑकी गयी थी लेकिन ऐसी सारी घटनायें कभी भी धार्मिक उत्तेजना नहीं बल्कि पुलिस ततीश का ही हिस्सा बनी रहीं।
बहरहाल, ऐसी ही चोरियों के क्रम में जब उक्त देवकाली मंदिर में चोरी हुई तो उसे हवा देने जनपद गोरखपुर स्थित गोरखनाथ धाम मंदिर के महंत व भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ 13अक्तूबर को फैजाबाद आ पहुॅचे। उनके आने पर स्थानीय प्रशासन उनके आगे दंडवत हो गया। उनकी मान-मनौव्वल होने लगी तथा उनसे सिफारिश की गयी कि वे अपने कार्यक्रम को सीमित करें। जवाब में योगी आदित्यनाथ ने अपने भाषण में कहा कि प्रदेश सरकार कब्रिस्तानों की सुरक्षा के लिए सरकारी धान फॅूक रही है और मंदिर लूटे जा रहे हैं। उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा कि अगर 48घंटे में मूर्ति बरामद न की गई तो 'बड़ा आंदोलन'छेड़ा जाएगा। इसके जवाब में उसी दिन समाजवादी पार्टी की प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य व लोहियावादी विचारक सूर्यकांत पान्डेय ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि दुर्गा पूजा व दशहरा के अवसर पर संघ व अन्य कट्टरपंथी ताकतें शहर का अमन चैन बिगाड़ना चाहती हैं। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि भाजपा व संघ को अयोध्या-फैजाबाद से अपने विधायक का हार जाना हजम नहीं हो रहा है और वे इसका बदला शहर की शांति व्यवस्था खराब करके लेना चाहती हैं। यही हुआ भी और ऐन 10 दिन के बाद शहर दंगे की भेंट चढ़ गया।
फैजाबाद शहर के विधान सभा क्षेत्र का नाम अयोध्या है। यहॉ से वर्ष 1991 में भाजपा प्रत्याशी जीता था और वह तब से लगातार जीतता रहा। इस दौरान भाजपा यहॉ से संसदीय सीट जीती और हारी भी लेकिन विधानसभा सीट पर उसका कब्जा 21साल तक लगातार बना रहा। इस बार हुए विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रसंघ के उपाध्यक्ष रहे तेज नारायण पाण्डेय को अपना प्रत्याशी बनाया और उन्होंने भाजपा के 21साल के जीत के इतिहास को हार में बदल दिया। सभी जानते हैं कि भाजपा के लिए अयोध्या का क्या मतलब है। अयोध्या की अशांति से ही भाजपा को यह सीट मिली थी। अयोधया में ही विश्व हिंदू परिषद ने अपना मुख्यालय 'कारसेवक पुरम्' बना रखा है जो प्रकारान्तर से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का भी क्षेत्रीय मुख्यालय है। अयोध्या में अपनी हार से भाजपा व उसके सभी अनुसंगी सकते में आ गए। उसकी इस हार का संदेश सारी दुनिया में गया। अभी दो माह पूर्व विहिप ने घोषणा की है कि वह आगामी कुंभ मेले में अपनी धार्म संसद की बैठक में अयोध्या में मंदिर निर्माण आंदोलन पर विचार करेगी तथा इसके लिए हिंदू जनमानस को फिर से जगायेगी। वह दस रुपये का कूपन बॉटकर चंदा एकत्र करने के अभियान में भी लगी है।
लेकिन फैजाबाद का प्रशासन इन सबसे अनजान रहा। यहॉ की खुफिया इकाइयों की हालत बहुत ही खराब है तथा ये लोग खुद सुरागरशी न कर पत्रकारों से ही सूचनाऐं पाकर प्रशासन को देते रहते हैं। सबसे संगीन हालत निकटवर्ती कस्बे भदरसा की रही जहॉ उसके टाउन एरिया चेयरमैन की भूमिका बहुत गलत बतायी जा रही है। भाजपा को छोड़कर बाकी सभी राजनीतिक दलों व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने चेतावनी दी थी कि शहर में दुर्गापूजा के दौरान उपद्रव किया जा सकता है लेकिन प्रशासन ने एक न सुनी बल्कि हैरत की बात है दुर्गापूजा की प्रतिमाओं के विसर्जन के दिन शराब की दुकानें खुली थीं जिन्हें कि ऐसे अवसरों पर बंदी का आदेश रहता है। पुलिस लाइन में ही यहॉ का अग्निशमन विभाग है लेकिन उसके टैंकरों में पानी ही नहीं था जबकि ऐसे टैंकरों को पानी से भरकर ही खड़ा करने का प्राविधान है।
फैजाबाद व उसके उपद्रवग्रस्त आधा दर्जन कस्बों में हालात फिलहाल सामान्य है लेकिन तनाव बढ़ाने की कोशिशें लगातार हो रही हैं। अफसोस की बात है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव फैजाबाद नहीं आये। वे महज अधिकारियों का तबादला करके ही फैजाबाद की जनता के घावों पर मरहम लगाना चाह रहे हैं। शासन ने उपद्रवियों के प्रतिकिसी भी प्रकार की सख्ती का परिचय नहीं दिया है जिसका नतीजा आगे चलकर और खराब हो सकता है क्योंकि ये दंगा राजनीतिक रोटी सेंकने का प्रयास है।
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कुछ अपने बारे में .....
सुनील अमर
Ayodhya - Delhi, U.P., India
An M.A. in English and a degree in Journalism . 45 years given to this field till now. Writer - Shayer & Social Activist .
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